शून्य से शिखर तक

लक्ष्य को पाकर दिखाना है मुझको।

जीत का परचम लहराना है मुझको।।

इस दुनिया में कठिन कुछ भी नहीं,

शून्य से शिखर तक जाना है मुझको।।


यदि जीवन एक खेल है तो मैं खेलूँगा।

चाहे लाख मुसीबतें आए मैं झेलूँगा।।

प्रेरित होकर ध्यान लगाना है कर्म में,

असंभव को संभव करके दिखाऊँगा।।


रच सकता है तो रच मेरे लिए चक्रव्यूह।

महारथियों के दल चाहे खड़े हो प्रत्यूह।।

ज्ञान हासिल किया है मैंने माँ के गर्भ में,

इस बार सातवें द्वार को भेदेगा अभिमन्यु।।


रह-रह कर अभी जवानी ने ली अँगड़ाई।

सुनहरे भविष्य के लिए लड़नी है लड़ाई।।

अपने हाथों लिखना है मुझे नया इतिहास,

यही सही समय है, शुरू करनी है पढ़ाई।।


कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़ 

जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई