चिंता है रोजगार की

“जो सही बात है, उसे सुनकर क्यों इस तरह तीन तेरह  कर रहे हो? मंत्री जी ने सही तो कहा है - सारे शिक्षितों के लिए सरकारी रोजगार संभव नहीं है.  इसमें क्या गलत कहा उन्होंने?”

“अरे भैया! क्या बोल रहे हो आप?”

“सही तो है. फसल काटते समय मिलने वाले रोजगार को अपनाने कहा गया तो इसमें इतना गुस्सा क्यों? अरे हमारे बच्चे  अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जाकर  वहां के पेट्रोल पंपों पर, सुपर मार्केट में, रेस्टोरेंटों में खाली समय में काम करें तो हमारे लिए गर्व की बात है? वही अपने देश में करें तो छोटा या गलत कैसे हो जाता है?”

“मतलब उन्होंने कहा था न बहुत सारे रोजगार उपलब्ध कराए जाएंगे.”

“मतलब रोजगार मुहैया कराएंगे कहा न,  सरकारी नौकरियां देने की बात तो नहीं थी न?”

“केंद्र में सत्ता वाली पार्टी ने कहा था कि हर  साल एक करोड़ रोजगार मुहैया कराए जाएंगे।  वे रोजगार कहां है?”

“अरे यह सब कैसे कह सकते हो छोटू! अब देखो हर गांव शहर में सुपर बाजार, मॉल, चैन शोप्स कितने हजार लोगों को रोजगार दे रहे हैं, क्या तुम नहीं जानते? यह मेरा कहना नहीं है। लेकिन सोच कितना अधिक बिजनेस किया होगा वरना जोमैटो का पब्लिक इश्यू अड़तीस गुना अधिक ओवर सब्सक्राइब हुआ कि नहीं? तुम ही बोलो.”

“भैया! आप ऐसा कहोगे तो मैं क्या कहूंगा?" 

"अब क्या सोचते हो कि सरकारी नौकरियां कितनी होती होंगी? एक सौ पैंतीस करोड़ जनसंख्या में, सरकारी चाहे वह केंद्र में हो या राज्यों में सब मिलाकर तीन  करोड़ से अधिक नौकरियां नहीं होंगी उनमें भी आधे से अधिक रिक्त रहती हैं क्योंकि चुनाव जब भी हो तो कुछ पदों को भरने की स्थिति दिखानी पड़ती है न? इतने कम अवसरों के लिए इतनी चिल्ल पों  क्यों?”  

"भैया!  कुछ भी कहो सरकारी नौकरी की अपनी अलग महत्ता होती है अलग ओहदा होता है और मजा होता है। अब इससे अधिक  क्या कहूँ?”

“यह बात यूं ही नहीं कही गई कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है. हम बड़े-बड़े सपने देखते हुए अपने बच्चों को भारी फीस देकर बड़ी-बड़ी स्कूलों में, निजी स्कूलोँ में भेजते हैं न? वही बड़े-बड़े स्कूल कोरोना के नाम पर अपने यहां काम करने वाले शिक्षकों को बिना वेतन सताया कि नहीं?  ये सारे शिक्षक अपने लिए दूसरे रोजगार ढूंढने निकल पड़े. कोई सब्जी बेच रहा है। कोई मजदूरी कर रहा है. कोई किराए की टैक्सी चला रहा है। कोई पकौड़े बेच रहा है। इस तरह कई काम धाम खोज लिए गए हैं और अपने पेट पाले जा रहे हैं।  हमारे मोहल्ले में सब्जी बेचने वाला एक शिक्षक तो यहां तक कहता है कि अब स्कूल खुल भी जाएं तो वह नहीं जाएगा। यही धंधा करेगा। इसमें से श्रम की महत्ता, आजादी और कमाई दिखाई पड़ती है. वह कहता है कि बेकार में काम के लिए मारा मारा फिर रहा था।”

“भैया! मैं भी वही कह रहा हूं।  मंत्री जी ने नहीं कहा या सरकार ने नहीं कहा इसलिए कोई भी बिना नौकरी, रोजगार, काम तलाशे खाली नहीं बैठा है। पकोड़े, आमलेट या समोसे बनाते हुए या पानी पुरी और पाव भाजी के ठेले लगा कर जिए जा रहे हैं।  कुछ लोग तो सेलफोन मरम्मत भी कर रहे हैं। जो यह सब नहीं कर पाए तो छोटे-मोटे काम और मजदूरी करके जीवन यापन कर रहे हैं। भैया!”

“वास्तव में यह रोजगार की समस्या का शोरोशराबा हमारे दक्षिण के राज्यों में ही बहुत ज्यादा है। अब अपने यहां देखो दूसरे राज्यों से आकर यहां व्यापार करने वाले कितने अधिक हैं। उनके बच्चे भी पढ़ते हैं, लेकिन बेरोजगारी का रोना नहीं रोते। किसी पर आरोप नहीं लगाते। उनका लक्ष्य तो हमेशा उनके व्यापार को बढ़ावा देना ही होता है और कुछ नहीं।”

“सही बात है भैया! आजकल किराना दुकान भी वही चला रहे हैं। शहरों में भी वे बहुत अधिक फैल गए हैं अपने काम धंधे के साथ। तो आप कहना क्या चाहते हो कि हम पढ़ें न शिक्षित न हों।”

“न न  ऐसा मैं क्यों कहने लगा? इंजीनियरिंग, परास्नातक पढे लोग रेलवे गैंगमैन और लिपिकों के रूप में काम कर रहे हैं। उस परिधि से बाहर न आ सकने की स्थिति में उतार-चढ़ाव के बिना जीवन जी रहे हैं। यही मेरा वेदना का कारण है, मेरे दर्द का सबब है।”

“भैया! तुम कुछ भी कहो. सरकारी नौकरी का मजा अलग है। अगर वह मिल जाती है तो जिंदगी बन जाती है। इस नाम से हाथ पर हाथ धरे जी सकते हैं। इसीलिए न सभी लोग सरकारी रोजगार के पीछे दौड़ भाग करते हैं।" 

"वह तो ठीक है लेकिन?”

“लेकिन वेकिन छोड़ो भैया! सरकार सुखी रहे और दो-तीन साल में एक बार कुछ एक नौकरियां भरे और क्या चाहिए? रोजगार सूचनाएं अखबारों में आने वाली हैं इस समय। किसको पकड़ना है काम के लिए, कितनी दक्षिणा समर्पित करनी है, देखना है। मैं इस काम में लग जाता हूं। मैं चला।”

डॉ0 टी0 महादेव राव

विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश)

9394290204