कुछ भी नहीं है नया

कोविड के नए वेरिएंट जे एन वन के भारत में भी आ जाने के संदर्भ में मैं एक बुजुर्ग डॉक्टर से इसके बारे में पूछा। वे बोले भारत के लिए यह कोई नया नहीं है। हमारी पूरी तैयारी है और देश के पिचासी प्रतिशत लोग वैक्सीन ले चुके हैं और तीन तीन स्तरों पर हम कोविड की मार से उभर चुके हैं, हमारी रोग प्रतिरोधन क्षमता भी गजब की है। चिंता मत करो नया कुछ नहीं है। 

सच है हमारी सहनशक्ति बहुत ज़्यादा है, तभी हम छोटी छोटी बातों में भी खुश रहने के आदी हैं। खुशी में हम ताली बजाते हैं, थाली पीटते हैं, दिये जलाते हैं, फूल बरसाते हैं और ऑक्सिजन और अस्पताल में बिस्तर के अभाव में मर भी जाते हैं।

मैं सोचने लग गया “नया कुछ नहीं है” पर। सच ही तो है, साल दर साल बदलते हैं और हमारे लिए नया कुछ आता ही नहीं है। वही हालात, दुबके से सताये हुये से जज़्बात और फिर कभी न कम होने और बढ़ती जाती महंगाई की लात। दूर होते रिश्ते, दुख दर्द न सुनते फरिश्ते और सारे मिलकर फंदे कसते जीवन के अजीब रस्ते। मैं कविता नहीं कर रहा हूँ, दुखड़ा नया कुछ न होने का रो रहा हूँ। दफ्तर में बॉस वही रवैया अपनाता घर में भी लगता है सदियों से शोषित हैं। कुछ भी तो नहीं बदला। 

बाज़ार में वही मुरझाए चेहरे, शीत में वही धुंध और कोहरे और हम हैं नेताओं के इशारों पर नाचते मोहरे। आवाज़ उठे उससे पहले गरीबों को मुफ्त राशन पानी, धन्ना सेठों पर ऋण के रूप में करोड़ों की सरकारी मेहरबानी और मध्यम वर्ग के त्रिशंकु स्वर्ग में होने की कहानी। मुफ्त देने के लिए पैसे हैं लेकिन तीस साल से ज्यादा काम करके थके लोगों की तुच्छ सी पेंशन को थोड़ा बढ़ाने में मंत्री मण्डल की आनाकानी। नया साल है लेकिन कुछ भी नया कहाँ? सब वही, जस का तस।

दोस्त ने कहा "चलो न्यू ईयर सेलेब्रेट करते हैं, किसी होटल में चलके दोस्तों के साथ मस्ती करते हैं।" "किस बात की खुशी में"मैंने पूछा। "नया साल है यार, मज़े का मौसम है तैयार।" मैंने पूछा ; "क्या इन हालातों में तुम्हें लगता है मज़े कर सकेंगे।" उसने कहा - "महंगाई, घर की लुगाई, नेताओं की गुंडाई, दफ्तर में पिसाई, इन सब पर कम कमाई – इन सब बातों को भूलकर कुछ चढ़ाते हैं और ज़िंदगी की गाड़ी बढ़ाते हैं।

ऐसा करके हम सरकारी आय बढ़ाने का काम निबटाते हैं।" "हालातों से भागना सही है?" मैंने पूछा। वह बोला - "तो क्या कर लोगे जो आज तक नहीं किया। बड़े भैया हर महीने रेडियो से कान खींचना नहीं छोड़े, सरकारी कंपनियों को बेच खाने का काम नहीं छोड़े, नहीं छोड़े फोटू खिंचवाने का शौक। कोई बदलाव आया? 

कोई नयापन है देश में। नए कोविड वेरिएंट के चलते निजी अस्पताल और डॉक्टर बेवजह आने वाले धन के  सपने देखते हुये भांगड़ा कर रहे हैं। क्या कर पाये हम सब हमेशा रोना धोना करने के अलावा? छोटे छोटे बहाने ढूंढ लेते हैं हम खुश रहने के, वरना इस मुसीबतजदा ज़िंदगी में क्या रखा है?" मैं उसकी बातों के बारे में सोचता हुआ चल पड़ा। उसने आवाज़ लगाई – "भाई नया कुछ नहीं है इसलिए आओ हम पुराने ब्रांड से ही काम चला लेंगे। हां। नई है तारीख, नया है कैलेंडर और कुछ नया नहीं है।"     

डॉ0 टी0 महादेव राव

विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश) 9394290204