यूँ ही चल पड़े थे सफ़र में हम तो तनहा ही
पता ही नहीं था कि मिलेंगे आप सलीके से
स्वांँस थमने तक ज़रूरी है दुनिया में दुनिया की
राख होने तक कफन पर लिखेंगे नाम सलीके से
कैसे कह दूँ कि इस सुख़न के काबिल हूँ मैं
जब कि शर्त है ये कि पीएंगे जाम सलीके से
रुका ही कब कोई बयार रस्ते में तसल्ली से
खोजती हैं निगाहें फिर भी अपने राम सलीके से
हुआ इम्तहान इस कदर गुजरे जिस राह से
अब आदत को है आदत कि रखेंगे मान सलीके से।
मिल गया ये कारवां मुझको आज महफ़िल में
न जाने कौन किससे कब छूटेंगे हाथ सलीके से।।
नाम:- मंजुला श्रीवास्तव
पता:- गाजीपुर