विशेष संबंधी कानून के......

 “कानून सभी का रिश्तेदार नहीं।”

 “सच तो है। कानून किसी का भी संबंधी नहीं।”

 “गलत है! सभी का संबंधी नहीं, कुछ लोगों को छोड़कर।”

 “वह कैसे? कानून के सामने सब बराबर जो हैं”

 “सभी समान नहीं हैं, बराबर नहीं हैं। कुछ लोग कुछ ज्यादा ही बराबर हैं।”

 “तभी न! समझकर साथ रखने वाले का कानून करीबी रिश्तेदार हुआ. जो लोग   इस तरह अपनी सोच नहीं रखते उनके लिए दूर के रिश्तेदार सा हो गया है.”

 “गलत करने वालों को कानून के आगे सर झुकाना ही होगा न?”

 “लेकिन नेतागण, सत्ता के पक्षधर, सरकारी ओहदे पर बैठे लोग, अपनी महानता की पैरवी करने वाले, इन खास वर्ग के सारे वीरों की मांग है कि कानून उन्हें अन्य  लोगों से अलग, विशेष रूप से देखें और सम्मान दे और कुछ खास रियायतें और सुविधाएं दें।”

“ वह  कैसे होगा?  कानून के लिए अपना पराया है भेद कहां होता है? उसकी नजर सब पर बराबर पड़ती है. सभी बराबर जो हैं.”

“खास नजरो-करम होना चाहिए, जैसा कि विशेष वर्ग जनों का कहना है, विश्वास है। राजस्थान में मद्यपान कर वाहन चलाते एक लड़के को पकड़ कर पुलिस वाले थाने ले गए। उस लड़के की बुआ, विधायक अपने पति, भजन मंडली और अनुचरों को साथ लेकर थाने पर हंगामा खड़ा किया और धरना दिया कि “लड़के हैं तो पिएंगे ही। क्या इतनी भी उन्हें आजादी नहीं?” कहते हुए अपना आश्चर्य प्रकट किया। पुलिस वालों को प्रोटोकॉल का उपदेश देते हुए सिखाया कि नेताओं के साथ किस तरह आदर पूर्वक व्यवहार करें। फिर  उस लड़के को छुड़वा कर ले गए और अब कहो कानून, बराबरी, खास रिश्ते ... इन शब्दों का क्या अर्थ है?”

 “कहीं एकाध जगह हो गया और आपने उसे सार्वभौमिक सत्य और व्यवस्था मान लिया?”

 “सामने वाले पर कीचड़ उछालना राजनीतिक वर्ग के लिए बाएं हाथ का खेल है। ऐसे हड्काने वाले धमकाने वाले ‘गुर’ सभी नहीं जानते।  बीमार होने को कारण बताते हुए जमानत पर जेल से रिहा हुए मध्य प्रदेश के भाजपा सांसद द्वारा खेलते हुए, पार्टियों में नाचते हुए वीडियो लिया गया और उसे दिखाते हुए विरोधी कांग्रेस के नेताओं ने उंगलियां उठाईं।  उत्तर प्रदेश में किसानों को कॉन्वॉय द्वारा कुचले जाने के मामले में केंद्र मंत्री के पुत्र होने के कारण गिरफ्तारी में देरी की गई कहते हुए विपक्ष ने जमीन आसमान एक कर दिया। हम किसी से कम नहीं मानते हुए छत्तीसगढ़ में नवरात्रि उत्सव में शामिल भक्तों पर एसयूवी वाहन के टूट पड़ने वाले प्रकरण में, मामले को बदला गया कहते हुए वहां विपक्ष के नेता वहां की सरकार पर आरोप दर आरोप लगा रहे हैं।  यह सब सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आदतन होने वाली रस्साकशी है छींटाकशी है।”

 “सभी नेता एक जैसे नहीं होते उत्तराखंड के एक मंत्री ने नया सिद्धांत दिया कि मनुष्य ही क्यों? मनुष्यों के साथ पशु भी बराबरी का हक़ रखते हैं। उन्होंने आश्वासन दिया की पशुओं को भी सोने के लिए गद्दे दिए जाएंगे। साथ ही बीस किलो घास भी घर-घर राशन में दिया जाएगा।  यह सब मनुष्य और पशु को समदृष्टि से देखने के कारण ही तो।  उनकी इस विशाल हृदयता पर ट्रोलिंग हो रहे हैं और मींस बनाए जा रहे हैं। क्या यह ठीक है?”

 “मैं तो कहता हूं अगर नेताओं के साथ खेलने का मौका दिया जाता है तो उसका पूरा पूरा उपयोग किया जाना चाहिए। सत्ता की लालच, कुर्सी का अहम, धन का घमंड, पहुंच का पागलपन जैसे शंख चक्र के साथ जन्मे उनको कानून से क्या काम?  है तो वे इन सबसे ऊपर। यही तर्क है उनका।”

 “लेकिन इतने सारे लोगों में उन्हें पहचाने कैसे?”

 “बहुत आसान है। अगर सड़क पर पुलिस ने गाड़ी रोक दी तो सामान्य गरीब या मध्यवर्ग के जन हाथ पैर जोड़ते हैं।  बड़े ही दीन हीन होकर बात करते हैं।  अब जो अदृश्य शंखचक्रधारी भारी नेतागण के जो चमचे होते हैं वह क्या कहेंगे ‘जानते हो मेरे पीछे कौन है? फलां फलां को बोल दूंगा तो खड़े-खड़े वर्दी उतर जाएगी या अंडमान निकोबार में बदली हो जाएगी। सोचो सभी लोगों की तरह हमें रोक नहीं सकते समझे हम कानून से परे हैं। सत्ता पक्ष के लोगों से भरे हैं।’ तो उनके लिए रुकावट नहीं के बराबर या नहीं होनी चाहिए।”

“वो कैसे?”

 “चार पांच बोतल पिया हुआ हो तो भी परवाह नहीं करना, पीकर गाड़ी चलाएं तो भी नहीं रोकना, रोक लिए तो प्यार से कानों में फुसफुसाकर छोड़ देना और उन्हें छूट दी जाए कि वे न लालबत्ती पर रुकें, कहीं भी गाड़ी खड़ी कर लें, छूटे हुये सांड की तरह गाड़ी किसी भी रफ्तार से चलाएं, बस अनदेखा करना होगा। वैसे भी आंखों पर पट्टी बांधे कानून देखता कहां है?’’

 “लेकिन भाई! आम जनता की गाड़ी जब सड़क पर आती है तो छायांकन कला के महान कलाकार पुलिस वाले हजारों फोटो खींच लेते हैं। जुर्माना भरवातें हैं। ऐसे में लोगों को छोड़ देना कानून के खिलाफ है कि नहीं?”

 “पैरों की रफ्तार को रोकते नियम कानून को बड़े प्यार से किनारे फेंकते हुए जा रहे लोगों को यह बंधनों नियमों के नाम से क्यों सताया जा रहा है? यह उनका आक्रोश है।“

 “अगर ऐसा है तो यह सुविधा सभी लोगों के लिए मुहैया कराई जाए न?”

 “वह कैसे होगा? तब सभी एक से नहीं हो जाएंगे? विशेष और प्रमुख होने की ख्याति वाईफाई की तरह उनके आसपास मंडराती रहती है।  तभी न उनका आदर है, मूल्य है, प्रतिष्ठा है। इसलिए कानून के खास रिश्तेदार कुछ लोगों को ही होना है, सभी को नहीं। किस साम्यवाद की बात कर रहे हो? ऐसा होगा तभी तो दूध का दूध और पानी का पानी यानी नीर क्षीर का न्याय होगा और हमारा कानून अपनी प्रतिष्ठा का पताका फहराता रहेगा।”

 “हे भगवान”

डॉ0 टी0 महादेव राव

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