उसकी चिट्ठी

नींद नहीं है इन रातों में,

             करती छुपम–छुपाई है।

चांँद रोशनी की मिली झलक ,

                है खिड़की पर दुबके से,

टिम–टिम करते इन तारों को,

                  झाँक रही है चुपके से,

दृश्य देख विचलित होता मन,

                      वह थोड़ा घबराई है,

  नजर टिकाती फिर पन्नों पर,              

                    उसकी चिट्ठी आई है।।

कल–कल नदियाँ शोर मचाती,

                    आकर्षित कर लेती हैं,

जाकर मिलना है सागर से,

                      संदेशा यह देती हैं,

प्रेम पत्र पढ़ लहर दौड़ती,

                 देख जरा शरमाई है,

बातें करती वह खुद से ही,

                 उसकी चिट्ठी आई है।।

लिपट गई खुद की बाँहों में,

                     व्याकुल आंँखें रोती हैं।

 श्वाँस भरे स्याही की खुशबू,

                     शब्द बिखरते मोती हैं,

ठिठक गई सारी घड़ियांँ पर,

                    हलचल जरा मचाई है,

उमड़ रही हैं खुशियाँ मन में।

                       उसकी चिट्ठी आई है।।

रचनाकार

प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com