वो अदना सा आदमी

हमने देखे हैं कि

बड़े बड़े तुर्रमखां लोग भी

जेब से नहीं निकालते

एक भी दमड़ी,

जब कोई भूखा,

कोई जरूरतमंद,

कोई असहाय,

आ जाए गुहार करने

कुछ मदद की,

तब दिहाड़ी करने वाले

की जेब से निकलता है

मदद को चंद सिक्के,

जो वो बचाकर रखा रहता है

अपनी मुश्किल पलों पर

इस्तेमाल करने खातिर,

उन्हें नहीं होता देने में कुछ मलाल,

क्योंकि वो भी

गुजरा रहता है किसी समय

इस तरह के नाजुक पलों से,

तब जाग उठता है

उसके अंदर की इंसानियत,

वैसे भी पेट भरा हुआ भी

गाहे बगाहे निकालते रहते  हैं

इनसे पैसे,

कभी चंदे के नाम पर,

कभी धर्म के नाम पर,

तो कभी उत्सव के नाम पर,

यहीं तो है वो अदना सा आदमी।

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग