मैं कुछ कहूं या न कहूं..

होतें हैं हालात ये ऐसे कभी, चाहकर भी अल्फ़ाज़ बयां नहीं होते

मैं कुछ कहूं या न कहूं, मन का तुम ही कुछ "कह" जाया करो !!


बात छोटी सी है शायद , पर मन को अब संभालूं मैं कैसे

कि कागज़ों में जगह मिलती नहीं, आंखों से ही समझाया करो !!


कुछ तो ये तजुर्बे हैं जिंदगी के, कुछ वक्त की नजाकत है ,

मैं चाहकर भी बिखरूं कैसे, तुम ही आसमान बन जाया करो !!


गुजरता है दिन उलझनों में ही, रात आंखों की नमी से भरी

पल जो गुजरे "बिन तुम्हारे" ही, तुम वो "ख्वाब" ही बन जाया करो !!


जिंदगी, सुनों तो..बोलो किस तरह अब मैं "कहूं"..

वश में कुछ नहीं है तो.. "कुछ पल" को ही "साथ" रह जाया करो !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश