बीत गया ये बरस

श्रावण माह से आश

में बैठी तूम परदेसी

आओगे भाद्रपद बिता

अश्विन आया पर

तुम न आये मनभावन जी।

बिता कार्तिक और

माघ बेदर्दी पौष भी

लो बिता जाए जी।

कब आओगे एक

खत ही भेजों,किस बात

पे रूठे हो मनबसिया जी।

माला फेरु,या भोग बनाऊ,

चित मेरा घबराएं जी कौन से

प्रीत मैं गाऊ की तुम आन

मिलोगे रंगरसिया जी।

बीत गया ये बरस तुम

सुन लो कौन जतन की

क्या क्या बताऊ जी।

आएगा एक नया बरस अब

तुम भी आजाओ सावरियां जी।

रास रचाओ बंसी बजाओ,

पर लो मेरी भी सुध कन्हैया जी।

बाके बकेविहारी मेरा चित हर लो

पर  संग में रहो अब राधिका प्यारे जी।


-- लवली आनंद ,

मुजफ्फरपुर , बिहार