"समय को यूं ही रुक जाने दो। सपने को सच होकर बढ़ जाने दो।"
"आसमान पलट जाए फिर भी समय किसी के लिए भी रुकता कहां है छोटू? फिर भी सारी दुनिया अब तक कई केक ऑर्डर करके, कार्टनों बीयर और शराब के बोतल खरीद कर, नए साल में जेब ढीली करने की योजना में बड़े उत्साह के साथ व्यस्त है और तुम हो कि समय को रुकने के लिए कह रहे हो। ऐसा क्यों?"
"वह ऐसा है भैया! 2021 आया - कोरोना की दूसरी दशा लाया। पूरी दुनिया को दुख में डुबो दिया। नई आशाएं लेकर 2022 में कदम रखे। वायरस तो खत्म होने लगा उस पर तूफान, बाढ़ - जनता को कितना भारी कष्ट हुआ। कितना सारा नष्ट हो गया। नुकसान हुआ। इसलिए तो लग रहा है कि समय रुक जाए तो अच्छा होगा।”
"न! न! कितनी बड़ी बात बोल दी छोटू तुमने? इस साल 2023 में कुछ राज्यों में चुनाव हुए। अगले साल आम चुनाव के मेले लगेंगे। अगर समय रुक गया तो इतनी सारी राजनीतिक पार्टियों के किस्मत के इम्तिहानों का क्या होगा? कुर्सी पाने के लिए लालयित, लार टपकाते हजारों चुनावी उम्मीदवारों के सपनों का क्या होगा? आने वाले चुनाव में कौन से घोड़े जीतेंगे और कौन से हारेंगे- देखने को आँखें फाड़े देख रही जनता के इंतजार का क्या होगा? उनकी उत्सुकता और जिज्ञासा पर भी पानी फेरने की सोच रहे हो। तुम पर देशद्रोह के साथ प्रजा द्रोह का नया मुकद्दमा भी ठोंक देना चाहिए। अगर समय रुक गया तो चुनाव के दौरान जनता में चिकन बिरयानी बांटने के लिए पाली जा रही मुर्गियों का क्या होगा? मतदाताओं पर भारी उम्मीद लगाए बैठे शराब उत्पादन केंद्रों के मालिकों के लिए डूब मरने की बात होगी अगर समय रुक गया तो। चुनाव में वोट ख़रीदने के लिए छुपाये गए काले धन के नोटों का क्या होगा? कुछ भी हो आने वाले आठ दस आम चुनाव देखने की आशा लिए बिंदास जिंदा रहने की सोच छोटू! इस तरह बेसिर पैर की सोचोगे तो कैसे चलेगा?"
"भैया! आपको मेरे दर्द पर हंसी आ रही है? अगर वे नेता ही ठीक रहते, तो क्या जनता को इतने कष्ट भोगने पड़ते? चुनाव एक फालतू और बेमाने मामले के सिवा आम जनता के लिए क्या है बोलिए?"
"बात जब जनता की समझ में आएगी, तो वही करेंगे जो कुछ ठीक करना है, सही करना है। जनता को जो चाहिए, जनता ही फैसला करेगी। मौके के हिसाब से काम करने में भी जनता का जवाब नहीं। अरे उनके पास तो वोट नाम का शक्तिशाली औजार जो है।"
"भैया! क्या वैसे दिन आएंगे? संविधान निर्माताओं ने जो लोकतंत्र के सपने देखे, क्या वे साकार होंगे? विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर रचित ‘जहां मन निर्भय रहेगा... जहां मानव गर्व के साथ सिर उठाकर जिएगा’ क्या वैसे हालत हमारे आएंगे भैया?"
"यही मालूम करना हो तो समय को लगातार आगे बढ़ते रहना होगा न? रुक गया तो क्या होगा? सारा निस्तब्ध, सारहीन, तेजहीन, निराशा भरा और दुर्बलताओं से घिरा रह जाएगा।"
"शायद सच ही कहते हो भैया! एक तरफ महंगाई दूसरी तरफ वातावरण में हो रहे भीषण बदलाव। आगे आगे और प्रलयंकारी तूफान टूट पड़ेंगे - ऐसा कहा जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि पृथ्वी आग का गोला बन जाएगी।"
"इन सारे कष्टों से निजात पाने के लिए ही तो दुनिया के सारे देश 'काप 26' में निर्णय लिए हैं। एक बात बता! यह सारे कष्ट मनुष्य के लापरवाही और प्रकृति के साथ खिलवाड़ का ही तो नतीजा है। है कि नहीं?"
"वह तो ठीक है। लेकिन भविष्य के बारे में सोच कर डर लग रहा है भैया।"
"पगले! कितने सारे प्रलय, कितने सारे उत्पातों के बाद भी मानव सभ्यता ने इतनी लंबी यात्रा सफलतापूर्वक पूरा किया होगा? पाषाण युग के पुराने दिनों में पथरीली गुफाओं में क्रूर जंतुओं के भयंकर गर्जनों के बीच भी झपकी लेकर सोने वाली स्थिति से दूसरे ग्रहों में आवास बनाने की स्थिति तक पहुंचा है मनुष्य। गुफा से ग्रह की इस लंबी यात्रा में उसने कितनी कितनी तकलीफ उठाई होंगीं? कितना संघर्ष किया होगा?
मेसोपोटामिया, सिंधु, माया जैसी अनेक सभ्यताओं के विलुप्त होने के बाद भी अपने अस्तित्व को मानव ने बनाए रखा। समय-समय पर साहस के साथ, अमित आत्मविश्वास के साथ, कभी न कम होने वाले परिश्रम के साथ उसने इतनी प्रगति प्राप्त की है। इस प्रगति दौरान की गई गलतियां अब लौटकर आ रही हैं - गले में फांस की तरह फंस रही हैं। यह बात अब समझ में आने लगी है।
सेंद्रीय (कार्बनिक) फसल, प्लास्टिक के निषेध की दिशा में धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहे हैं। पुनरोपयोगी ईंधन, बिजली की वाहनों पर बड़े पैमाने पर काम किया जा रहा है। जल्दी ही सब कुछ ठीक होगा। प्लेग और हैजा जैसे महामारियों से लड़कर अपने वजूद को कायम रखने वाली दुनियां के लिए बीमारियां कोई बड़ी चीज नहीं है। यही उम्मीद, यही आशा आने वाले कल के लिए सेतु है, पल है। उसे पल पर से नए साल में कदम रखेंगे। सब कुछ अच्छा हो ऐसी आशा करेंगे।"
डॉ0 टी0 महादेव राव
विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश)
9394290204