भली, हाजिर जवाबी - जो बोओगे उसी की फसल काटोगे..…...

ये विविध तरीके से दलों व नेताओं का छलावा पत्र होता है जिसका कभी शर्तानुसार शतश: पालन वर्तमान राजनीति में नहीं होता हैं। असंभव के साथ कई संभव घोषणाएं भी अधूरी रह जाती है। देश में कोई भी पक्ष हो बड़बोलेपन और नहीं करने वाले कटाक्ष अक्सर हो जाते हैं। चाहे जानबूझकर किये जाएं। फिर चाहे खेद प्रकट करो। आपने तीर छोड़ ही दिया हैं। यही राजनीति हो रही हैं।

हमने ये किया, वो किया सब बखान कर दिया। साफ पर्देदारी डाल दी। उन अनुउपलब्धियों के पर्दे पर। कितने युवा दुखी होते हैं, कितनी जनता कुछ वर्ग को रिझाने में दुखी होती है। इसकी गणना नहीं होती। साफ धुली चादर के नीचे-पीछे छुपी गंदगी पर नजर ही नहीं डाली जाती।

वर्तमान में पढ़ा लिखा हो या कम पढ़ा-लिखा युवा वर्ग परेशान हैं, बेचैन हैं, बेरोजगारी कभी खत्म नहीं हो सकती कभी बनावट के उसूलों से  और खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलों से युवा वर्ग लाखों रूपये खर्च उठाकर मेहनत से पढ़ाई करता है फिर रोजगार पाने के लिए नौकरी ढूंढता है परीक्षाएं देता है करोड़ों रूपये शासन के पास जमा हो जाते हैं नौकरी हेतु आवेदन फीस भरकर फिर बार-बार परीक्षा देता है, फिर पेपर लीक होने, परीक्षाएं निरस्त होने या साक्षात्कार ना होने, निरस्त होने, भर्ती ना किये जाने  की बेकार कवायद में भर्ती उम्र पार हो जाता है।

मध्यप्रदेश में कर्मचारी - पेंशनर्स, राज्य के एवं विद्युत विभाग के विद्युत कर्मियों, कंपनी केडर, संविदा, आऊटसोर्स याने अधिकांश सेवाकर्मी आर्थिक शोषण का शिकार हो रहे हैं।

विद्युत पेंशनर्स का जीना दूभर कर रखा है, अधिकारियों की मनमानी हठधर्मिता ने चुनाव के कारण, कर्मचारी नेतागण भी मजबूरीवश मन मसोसकर बैठे हैं, इसलिए कर्मचारी वर्ग का आक्रोश आज भी और बाद भी परिवर्तित नहीं हो सकता, यह ताकीद रहे कि जो बोओगे उसी की फसल काटोगे। याद रहे की चुनाव के समय मतदाता ही ताकतवर होता है।

बस उसे जताने का अवसर है मताधिकार का उपयोग विवेक से कीजिए, अपने सुख-दुखों, लिये दिये

गये अनुभवों का समीक्षक बनकर करीये, कर्मचारी-पेंशनर्स, सेवाकर्मी अपना सुख-दुखों से जन्मा अनुभव ही हमारे दिशाज्ञान का विवेक है।

हमें सुख देखना हैं, पुराने दुखकारी दिनों का दोहराव हम नहीं चाहते इसलिए हमारे योग्य व्यक्ति को चुनकर

भलाई करने वाली सरकार हम प्रदेश को दे सकते हैं, न अभाव (मजबूरीवश), न प्रभाव में, न लोभ-लालच में, न झांकी, न झकास में, न बलवश प्रभाव में, पड़े मत तो ईमानदारी से लोकमत के हर जन हितैषी, कल्याणकारी सरकार में।

- मदन वर्मा " माणिक " इंदौर