मध्यप्रदेश के स्थापना दिवस की खुशी, समस्याऐं बढी़ !

एक नवंबर को मध्यप्रदेश का 68 वां स्थापना दिवस पूरे प्रदेश में मनाया जा रहा है। सभी विभाग, सरकारी महकमा जुटा हुआ है कुछ अच्छा और अनोखा करने के लिए । आज हम जितनी सुविधाओं को जी रहे हैं। उस वक्त ये सारी अस्तित्व में नहीं थी। सरकार और उसकी नीतियों ने विकास की  परिभाषा को हकीकत में बदला। 

विकास अकेले नहीं सबके सहयोग से हुआ। प्रयास, ज्ञान, तकनीकी और धन से आज का विकसित मध्यप्रदेश सामने है। शिक्षा, स्वास्थ, तकनीकी कौशल में आगे है। यहां की हरियाली, संस्कृति, सुरम्य वन, साक्षरता में वृद्दी, आदिवासी क्षेत्रों का विकास में प्रदेश नये पायदान पर है। 

किसान संपन्न हुआ। अनेक नये शहर विकसित हुए हैं। सियासी हालात बदले हैं, स्थानीय परिषद-निकाय-पंचायत चुनावों के बाद अब नई बाडियां अपनी पारी शुरु कर रही हैं, इस समय विकास को एक नई गति मिलेगी। अब अस्तित्व में आने पर तो  पूरे जोश और विश्वास से काम होगा। इससे जनता का लाभ होगा। सहूलियतें व सुविधाओं का विस्तार सुनिश्चित है।

लेकिन हम फेल कहां हुए यह सोचना होगा। सबसे अधिक धोखा मध्यम वर्ग के साथ हुआ। जो परिवार सन् 1960 के समय 150-200-300  रूपये महीना कमाता था। वह भी खुश था। परिवार एक सदस्य की कमाई पर ही निर्भर था आज 20,000-30,000 हजार कमाने वाला भी सुखी नहीं। 

पहली बात तो यह है उस वक्त काम, धंधा, नौकरी मिल जाती थी। संयुक्त परिवार में खुशियां थी। अब एकल परिवार हो गये। पति-पत्नी और बच्चे ही परिवार, साथ में मां - बाप हिस्से में में आ गये तो वह भी शामिल। अब एक कमाओ सब खाओ पर निर्भरता नहीं। सब कमाओ अपना-अपना खाओ। ना कमाओ तो बाहर का रास्ता ही बचा है पर  काम, धंधा, नौकरी नहीं।

देश में और हमारे प्रदेश में आरक्षण, सरकार लाने और टिकाने की बरसों पुरानी वैशाखी है। संविधान के तहत जो व्यवस्था आरक्षण की हुई थी। उसे मसनद पर बैठे सत्ताधीशों ने, बार-बार तोड़कर, इतना लंबा खींच दिया, पिछले  बहत्तर सालों के बाद आज भी, उस गरम तवे को पकड़कर हटाने का साहस किसी सत्ताधारी में नहीं है। क्योंकि इसमें वोट बैंक खोने का बडा़ खतरा है। फिर क्या हम गंभीर मुद्दों को आसानी से खोने दें व भूल जाऐं या नाम ही न लें। आज उन समस्याओं के साथ नई समस्याऐं भी है। 

आज भी अमीरी-गरीबी का, जाति, धर्म का भेदभाव दिखाई देता है मगर जनसंख्या वृद्धि, बेरोजगारी और डावांडोल अर्थव्यवस्था की समस्या महामारी के रुप में सामने है। इधर ध्यान देने के बजाऐं अस्तित्व की लडा़ई लड़ रहे है प्रदेश में टिकाऊ और बिकाऊं के आरोप वर्तमान में लग रहे हैं राजनीति में, खुद्दारी, वफादारी नहीं है, तुने दिल मेरा तोडा़ कहीं का ना छोडा़ यह दर्द .... लेकर फिर मैदान में डटेंगे ही हैं । फर्क इतना है, जीतने की ख्वाहिश सभी में थी, हैं और रहेगी। जब-जब परिणाम आते रहेंगे तो नई  इबारत फिर से लिखी जाती रहेगी। 

कुछ अनोखा होगा तो ढोल बजाने को तो रहेंगे कि राजनीति हो या कोई भी क्षेत्र यहां कोई नहीं परमानेंट, जगत में नियम यह सेंट-परसेंट ! प्रदेश समय बदलने के साथ लगातार मध्यम तेज विकास करता रहा लेकिन आबादी के तेजी से विस्तार ने विकास की रफ्तार को धीमा कर रखा है इसलिए आज भी समस्याऐं बढ़ी है, मुद्दे विशाल हैं जिस तरह कोरोना ने प्रदेश की अर्थव्यवस्था को धरातल पर खींचा था उसका असर आज भी दिमाग में है। 67 वें वर्ष के बाद प्रदेश के विकास की रफ्तार बहुत तेजी से बढा़नी होगी।

                   --मदन वर्मा " माणिक "

                    इंदौर , मध्यप्रदेश

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