केरल विस्फोटों पर सियासत दुर्भाग्यपूर्ण

केरल के एर्नाकुलम जिले के कलामासेरी में रविवार की सुबह ईसाइयों की एक प्रार्थना सभा में 5 मिनटों के भीतर एक के बाद एक हुए तीन बम विस्फोटों से दो महिलाओं की मौत हो गई है और 50 से ज्यादा घायल हुए हैं। इनमें से कुछ की हालत बहुत गम्भीर बतलाई गई है। इन्हें आईसीयू में रखा गया है। तीन दिवसीय प्रार्थना कार्यक्रम के समापन अवसर पर चर्च के कन्वेंशन सेंटर में करीब दो हजार श्रद्धालु उपस्थित थे जब ये विस्फोट हुए। जिस जगह पर धमाके हुए वह येहोवा विटनेस ईसाई समूह का है। 

जिसने बम विस्फोटों की जिम्मेदारी लेते हुए त्रिशूर पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया है, वह खुद को इसी समुदाय से सम्बद्ध बतलाता है। हालांकि समुदाय ने उससे अपना पल्ला झाड़ लिया है। उस व्यक्ति के अनुसार यह धार्मिक समुदाय लोगों में विद्वेष फैलाता है तथा केरल के लिये हानिकारक है। इससे व्यथित होकर उसने विस्फोट किये। 

शनिवार को मल्लपुरम में फिलिस्तीन के समर्थन में निकाली गई एक रैली के दूसरे दिन ये विस्फोट हुए, जिसे हमास के एक नेता खालिद मशेल ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सम्बोधित किया था। इसलिये बम विस्फोटों को लेकर अब सियासी रंग देने की कोशिशें प्रारम्भ हो गई हैं। कांग्रेसी नेता शशि थरूर ने लोगों से शांति की अपील की है वहीं इस विस्फोट को लेकर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस पार्टी को ही घेर लिया है। उन्होंने कहा कि श्कांग्रेस बहुत खतरनाक राजनीति कर रही है। 

उन्होंने तंज कसते हुए यह भी कहा कि यही मोहब्बत की दूकान का असर है। त्रिवेदी का कहना था कियह देश की सुरक्षा, संवेदनशीलता व सामाजिक सौहार्द्र तीनों के लिए खतरनाक है। भाजपा की सरकार आने से पहले भारत का कोई भी ऐसा कोना नहीं था जहां धमाके नहीं हो रहे थे। आज सारी चीजें नियंत्रित हुई हैं लेकिन ये (कांग्रेस व विपक्षी दल) इस कीमत पर भी राजनीति करने को तैयार हैं। उनके अनुसार, मोहब्बत की दुकान की असली तस्वीर यही है। 

साथ ही केरल के भाजपा नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री अल्फोंस केजे का कहना है कि स्थिति बेहद गंभीर है। मैं लंबे समय से चेतावनी दे रहा हूं कि केरल में दोनों लेफ्ट और राइट आतंकवाद का समर्थन कर रहे हैं। केरल में यह बहुत लंबे समय से हो रहा है। आज केरल आतंकवाद की चपेट में है। इसे रोकना होगा। हालांकि त्रिवेदी यह नहीं बतला सके हैं कि इसका कांग्रेस से क्या सम्बन्ध है। खुद केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा है कि घटना के संबंध में विवरण एकत्र किये जा रहे हैं। 

विस्फोटों के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी विजयन से बात की और राज्य की स्थिति की जानकारी ली। असली बात यह है कि एनआईए और एनएसजी मौके पर पहुंचकर घटना की जांच कर ही रही है तथा उसके बाद भी किसी बात के पुख्ता प्रमाण अभी नहीं है। ऐसे में इसके लिये किसी को दोषी ठहराना अपने आप में गैर जिम्मेदाराना है। इस घटना को लेकर देश के कुछ राज्यों में अलर्ट जारी किया गया है। जाहिर है कि यह बहुत संवेदनशील मुद्दा है। 

इसे लेकर किसी भी तरह के हल्के या गैर जिम्मेदाराना बयान घातक हो सकते हैं। सभी दलों को चाहिये कि वे न केवल जिम्मेदारी के साथ इस पर बोलें वरन राज्य में शांति और अमन कायम करने की दिशा में भी मिलकर काम करें। सवाल यह है कि भाजपा नेता क्यों कर इस घटना को लेकर इस तरह का बयान दे रहे हैं? इसका जवाब मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों को देखने पर मिल सकता है। 

यह विस्फोट ऐसे वक्त पर हुआ है जब देश के 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और उन सभी में भाजपा की हालत पतली है। कम से कम तीन राज्यों- राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में उसका मुकाबला कांग्रेस से है तो वहीं तेलंगाना में उसे पीछे हटाकर सत्तारुढ़ भारत राष्ट्रीय समिति से मुख्य मुकाबले में कांग्रस ही आ गई है। रहा मिजोरम, तो वहां भी भाजपा की स्थिति सबसे फिसड्डी है। कांग्रेस अपने चुनावी अभियानों में जमीनी मुद्दों को लेकर सामने आई है। 

उसका फोकस न्याय योजनाओं तथा सशक्तिकरण पर है तो वहीं भाजपा के पास विकास सम्बन्धी कोई मुद्दे नहीं हैं जिसे लेकर वह जनता के सामने जाये। अब भी वह कांग्रेस तथा प्रतिपक्षी दलों पर भ्रष्टाचार के नाम पर केन्द्रीय जांच एजेंसियों के छापे डलवाकर चुनाव जीतना चाहती है। इसके अलावा वह सामाजिक ध्रुवीकरण के ही सहारे टिकी हुई है। चुनावी राज्यों में उसका एजेंडा साम्प्रदायिकता फैलाकर बहुसंख्यक वोटों को अपनी झोली में डालना है। 

हालांकि जिस प्रकार से इन सभी राज्यों में कांग्रेस की आंधी चल रही है, उससे भाजपा के मुद्दों को जनता की ओर से कोई तवज्जो नहीं मिल रही है। केरल हमेशा से ही भाजपा की आंखों की किरकिरी बना हुआ है क्योंकि वहां वाम लोकतांत्रिक मोर्चा की सरकार है। 2019 के लोकसभा चुनाव में किसी भी भाजपायी उम्मीदवार को सफलता नहीं मिली थी। 

इस बार लोकसभा चुनावों के लिये जो संयुक्त विपक्ष बना है उसमें भी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी व कांग्रेस सहयोगी हैं जिसके कारण भाजपा की इस सर्वाधिक शिक्षित राज्य में पांव जमाने की कोई कोशिश सफल नहीं हो रही है। इसलिये इस बम विस्फोट को सियासी तौर पर भुनाने का कोई मौका भाजपा छोड़ना नहीं चाहती- चाहे ऐसा करना देश के लिये कितना भी खतरनाक क्यों न हो।