दुखों के भंवर में कोई सहारा नहीं है
तकलीफों के इस भंवर में घिरा हर कोई है
सोचता हूं में मेरे अराध्य राम ना होते तो मैं क्या करता ,
प्रभु राम का सहारा ही मुझे सब संकट से दूर कर देता है
वह तो केवट की नांव में चढ़ कर गंगा पार गये थें
तभी तो केवट के भव भव के पाप मिट गये थें
जब श्री राम केवट की नांव में गये थें,
शबरी की त्पस्या का प्रतिफल मेरे राम थे
सुग्रीव की मित्रता का परिणाम मेरे राम थे
हनुमान की भक्ति की शक्ति मेरे राम थे
तभी तो में कहता हूं
प्रभु राम का सहारा ही सब संकट दूर कर देता है
सोचता हूं में कि मेरे अराध्य राम ना होते तो में क्या करता ?
प्रेषक लेखक हरिहर सिंह चौहान
जबरी बाग नसिया इन्दौर मध्यप्रदेश 452001
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