भाई-चारा

अड़बड़ लड़ाई झगरा होथे हमर गांव म,

झगरा बंद कराए बर बइठका होइस

बड़का पीपर के छांव म,

कोटवार ह छोटे बड़े सबो ल बलाय हे,

छोटे बड़े के संग मंझिला घलो आय हे,

संगता होय के मुद्दा रहिस

भाईचारा बढ़ाना हे,

"छोटन तंहि बता कइसे भाईचारा बढ़ाना हे?"

वो ह कथे-"ए तो असान हे,

सबो भाई मिलके

जब गाय गरुवा ल नई चराबो,

तभे तो चारा ल भक भक ले बढ़ाबो,

बाढ़ जाही त सबे के गरुवा खाहि,

घर बइठे पगुराही,"

सियान मन कहिन-

छोटन तैं जोजवा हस,

मुद्दा बर गोठियास नहीं

नवा गोठ के खोजवा हस,

नई समझ पाएंव काबर मैं भैरा हंव,

फेर झन समझिहा फालतू ऐरा गैरा हंव,

अपन अपन राय सबो बताइन,

अक्कल भर सबो गोठियायिन,

आखिर म मुखिया ह कहिन-

नशा पानी छोड़े ल परही,

सबो होस म रहि कोनो नई झगरहि,

बइठका सिरा गे सबो घर कोती जावत हें,

मुंदियरहा कती बइठबो गुन के

सबो सीधा सोझियावत हें,

कोनो मुंह नई सियीन,

टोंटा के आत ले सबो पियीन,

गोठ दु ले चार, चार ले आठ होवत हे,

चखना ल चाबत दारू म मुंह धोवत हे,

कोनो हांसत कोनो रोवत हे,

चढ़गे जेला जादा वोही जगा सोवत हे,

पइसा अउ ताकत के

सबो बखान करत हें,

पावर बाढ़े हे अतका

एक दूसर के कालर धरत हें,

भट्ठी डहर इसने कतको आत जात हें,

लड़ के,झगड़ के,भाईचारा ल बढ़ात हें।

नम्मू पामगढ़िया पामगढ़ छग