हुस्न-ऐ-जलवा

बिकती है जब निगाहें तेरी

तो झुकता है

शहर सारा,

फिरता हूँ जब गम-ए-आरजू लिए

तो बहता है

मेरा दर्द सारा,

चलता है जब हुस्न-ऐ-बाजार

मचलता देख

शहर सारा,

मुस्काती जब आँखे तेरी क़ातिली

तो धड़कता है

हर दिल प्यार,

उड़ती जुल्फें जब तेरी मटकती

बहता देख

आशिक़ हर आवारा।


डाँ. राजीव डोगरा

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