प्रकृति के संग

प्रकृति के संग रहकर जरा गुफ्तगू करना,

अपना मित्र समझकर अपनी बातें साझा करना,

प्रकृति से बहुत कुछ सीखने लायक है,

उसकी कदर हम नही करते ऐसे ना - लायक हम है,

भर-भरकर प्यार लूटाती हमपर प्रकृति,

पर हम हमेशा निराशा ही देते उसे ऐसी हमारी वृत्ति,

प्रदूषण उसका दुश्मन पर हम उससे दोस्ती करतें,

घर में साफ-सफाई और बाहर गंदगी हम फैलाते,

हम मनुष्य कभी भी नहीं सुधरने वाले,

हमारे गंदगी का बोझ प्रकृति पर ही डाले,

गंगा जैसी पवित्र नदी,शिव भगवान के वरदान को गंदा कर डाला,

स्वच्छता करने की बारी आयी तो चढ़ जाता गुस्से का पारा,

प्रदूषण से मर जाते जलीय जीव,

पल्ला झाड़ देते हैं दुसरों पर ऐसे हम मनुष्य जीव,

कदर करना प्रकृति की हमेशा,

बढ़ जायेगी हमारे जीवन की रेखा

ज्योति विपुल जैन वलसाड गुजरात