रात

अँधेरे में भी तीर इसके, ह्रदय बेध देते हैं

शांत सौम्य व्योम की कांति छीन लेते हैं

अपनी पूरी शक्ति से, कर रही आघात है

चंद्र को तोड़ने का लक्ष्य कर चुकी रात है..

विकराल है, विशाल है, विनाशक विचार है

और पाने की लालसा में फैलती धुंधकार है

इसकी क्रूरता के आगे तुच्छ सब आपात है

चंद्र को तोड़ने का लक्ष्य कर चुकी रात है..

सूरज को ललकारने का इसमें साहस नहीं

नम्रता होती है चोटिल, प्रबलता परवश नहीं

निज-विवशता पर दिखाता मन अश्रुपात है

चंद्र को तोड़ने का लक्ष्य कर चुकी रात है..

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अवतार सिंह अक्षरजीवी

जयपुर