बिखर - बिखर यह दुःख संताप
आलोकित करता हृदय द्वार।
विकल वेदना वरदान बनी
अचल सिंधु सी मैं बह चली।
चरण चारू के विस्मय चिन्ह
ज्वलित पग के संबल गिन।
करुणा भरा आमोद प्रमोद
लय स्वर रंजित वादित मौन।
मूंद कर आँखें खोई तम में
प्रकाश पुंज के उदित घन में।
प्रतिबिंब से स्नेह की बहती धारा
फूट पड़ी भावों की ठहरी ज्वाला।
स्वप्न स्वजन साजन मन मेरा
छवि छाया ले उमड़ा नयन तेरा।
तोड़ दूं दर्पण या अपना मन
बोलो कैसे तोडूं किंतु कन -कन?
_ वंदना अग्रवाल निराली (लखनऊ)