हमास का समर्थन या भारत का विरोध क्या है, एएमयू का एजेंडा

भारत सरकार के अनुदान से चलने वाला अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भारत के विरोध में ही क्यों खड़ा हो जाता है। दुनिया जानती है की फिलीस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता देने वाला भारत सबसे पहला देश है और इसराइल को मान्यता देने वाला भारत सबसे आखरी देश है। यहां सवाल फिलिस्तीन या इजराइल का नहीं है ुऔर ना ही किसी धर्म विशेष मजहब से है। 

सवाल एक ऐसे कट्टरपंथी संगठन हमास का है जो पूरी दुनिया में सबसे कुख्यात आतंकवादी संगठन है। याद करिए उस घटना को जब पूरी दुनिया कांप उठी थी। जब इजरायली महिला सैनिक को निर्वस्त्र कर उसके मृत शरीर के ऊपर खड़े होकर इन आतंकियों ने नारे लगाए थे। क्या है यह पूरा मामला आखिर क्यों हो रही है फिलिस्तीन और इजरायल के बीच लड़ाइयां प्रथम विश्व युद्ध के समय जब ऑटोमन सल्तनत की हार के बाद ब्रिटिश ने अपने अधिकार में ले लिया तब इजराइल का कोई भी नामोनिशान नहीं था। तब इस पूरे इलाके को फिलिस्तीन के नाम से जाना जाता था। 

यहां पर अल्पसंख्यक यहूदी और बहुसंख्यक अरब रहा करते थे वर्ष 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बांट दिया फिलिस्तीन का एक हिस्सा यहूदियों को मिला और दूसरा हिस्सा अरब लोगों को लेकिन मई 1948 को यहूदियों ने अपने हिस्से को एक अलग देश घोषित कर दिया जिसका नाम इसराइल रखा गया। इसराइलियों के इस फैसले से अरबी समुदाय खुश नहीं था। 

और फिर युद्ध की शुरुआत हुई और लाखों लोग बेघर हो गए युद्ध के बाद पूरे इलाके को तीन हिस्सों में बांट दिया गया फिलीस्तीन को पश्चिम किनारा और गाजा पट्टी का इलाका मिला गाजा पट्टी इसराइल और मिस्र के बीच भूमध्य सागरी तट पर स्थित है। अब यहां गाजा पट्टी पर फिलिस्तीन आतंकवादी संगठन हमास का कब्जा है। जबकि पश्चिमी किनारे पर इजरायल ने कब्जा किया हुआ है। 

इसराइल ने यरुशलम शहर पर भी युद्ध के दौरान कब्जा कर लिया और शहर के पश्चिमी हिस्से तक अपना कब्जा कर लिया। यरूसलम दुनिया की एकमात्र ऐसी जगह है जहां दुनिया में तीन बड़े धर्म इस्लाम यहूदी और ईसाई अपना पवित्र धर्म स्थल होने का दावा करते हैं। फिलिस्तीन यरूसलम को अपनी राजधानी बनाना चाहता है। इसके अलावा अरबी समुदाय के लोग यरूसलम को पवित्र स्थान मानते हैं। 

क्योंकि यहां अल अक्सा मस्जिद है अल अक्सा मस्जिद को इस्लाम में मक्का मदीना के बाद तीसरा सबसे बड़ा पवित्र स्थल माना जाता है। तथा यहूदी इसे टेंपल टाउन कहते हैं वही ईसाइयों का मानना है कि यह वही जगह है जहां ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था। और यही वह अवतरित हुए यहां द चर्च ऑफ द होली सैफलर है इसी के भीतर ईसा मसीह का मकबरा भी है। 

यहूदियों के लिए यह एक पवित्र स्थल है जो ड्रूम ऑफ द रॉक के नाम से जाना जाता है जो इसी के भीतर है। तथा पैगंबर मोहम्मद से जुड़े होने के कारण ड्रूम ऑफ द रॉक में मुसलमान भी आस्था रखते हैं। इस जगह को लेकर वर्षों से यहूदियों और फिलिस्तीनियों के बीच विवाद चला आ रहा है। तथा अल अक्सा मस्जिद को लेकर मुस्लिम देशों से इजरायल की लड़ाई होती रही है।

 यह पहला मौका नहीं है जब फिलिस्तीन आतंकवादी हमास इसके लिए लड़ रहे हैं वर्ष 2021 में भी यह लड़ाई 11 दिनों तक चली थी। पिछले 25 वर्षों से शांति वार्ता चल रही है लेकिन अब तक कोई हल नहीं निकल सका है। लेकिन मुद्दा यह है की इसराइल हमास फिलिस्तीन आपस में लड़ रहे हैं। और हमास के समर्थन में भारत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र खड़े नजर आ रहे हैं। और यह घटना तब होती है जब भारत के प्रधानमंत्री यह कहते हैं कि हम इस दुख की घड़ी में इजरायल के साथ हैं। 

आखिर बार-बार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भारत के विरोध में क्यों खड़ा होजाता है। मामला कश्मीर पाकिस्तान का हो या अरुणाचल प्रदेश चीन का हो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भारत के विरोध में ही खड़ा नजर आता है। 

आप पूछो तो बताया जाएगा साहब संविधान में लिखा है हमको अपनी बात कहने का हक है। किस संविधान में लिखा है कि अपने राष्ट्र का विरोध करो संविधान तो कहता है कि राष्ट्रहित सर्वोपरि जब सरकार ने फिलीस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता दी थी हम तब भी सरकार के साथ खड़े थे। इस बार हमास के हमले में लगभग 700 इजरायली लोगों की जाने जा चुकी हैं कितने लोगों को बंधक बनाया जा चुका है बर्बरता कुर्ता का नंगा नाच देखने को मिल रहा है सरे आम मानवता की हत्या हो रही है। 

जहां एक ओर कई देश इस हमले की घोर निंदा कर रहे हैं वहीं हमारे देश में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र हाथों में तख्ती लेकर इस आतंकवादी हमले को हवा दे रहे हैं। क्या इसी दिन के लिए महान समाज सुधारक सर सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। सर सैयद अहमद खान ने आधुनिक शिक्षा को समझते हुए एक आधुनिक स्कूल की वर्ष 1875 में स्थापना की जिसका नाम एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज था। 

जो बाद में वर्ष 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बन गया। इतना ही नहीं भारतीय संसद के एक अधिनियम के तहत वर्ष 1921 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को कैंब्रिज की तर्ज पर केंद्रीय दर्जा दिया गया। लेकिन आज महान समाज सुधारक सर सैयद अहमद खान के विचारों को धूमिल करता इस विश्वविद्यालय की गतिविधियों को देखते हुए अत्यंत दुख होता है। आज पूरे देश से आवाज उठ रही है की इस विश्वविद्यालय को बंद कर देना चाहिए और सरकार को विचार कर करना चाहिए जो सरकारी अनुदान से चल रहा है और जहां देश विरोधी गतिविधियां पाई जाती है।