विधा: गजल

जगती आंखों में इक ज़रा ख्वाब रखना,

उड़ने के लिए हौसला बेहिसाब रखना।


मंजिल हर किसी के लिए आसान नहीं,

अपनी मंजिल पर नजरें जनाब रखना।


खुल जाएं हर किसी के सामने अपनी,

ऐसी खुली अब न और किताब रखना।


ग़लत को भी ये दुनिया सही ही कहेगी,

हर बार सवाल करें, तो जबाब रखना।


अपने ही अक्सर बिछाते हैं कांटे राहपै,

तुम उनकी राहों पर इक गुलाब रखना।।


स्वरचित /अप्रकाशित 

कुमारी गुड़िया गौतम (जलगांव) महाराष्ट्र