इंदौरी शहर का आलम

दशहरा मिलन का उत्साह पुराने जमाने वाला वर्तमान में भी उन्हीं खुशियों को बढ़ाता हैं...!

इंदौर का धार्मिक  व आध्यात्मिक माहौल भी शानदार होता है। नवरात्रि में  गली-गली व चौराहों, मोहल्लों, कालोनियों, यहां तक की बगीचों, सोसायटियों व माताजी के मंदिरों पर आकर्षक, भव्य गरबों के आयोजन छोटे-बड़े, विशाल पैमानों पर मनायें जाते हैं। जिसमें सैकड़ों, हजारों की संख्या में युवक-युवतियों व कपल्स  द्वारा गरबा गीतों व संगीत के साथ हिंदी, गुजराती, बंगाली भाषाओं में प्रस्तुति दी जाती है। पुराने समय से यहां के अनेक स्थान मशहूर रहे हैं। 

नवरात्रि गरबा के नाम से काछी मोहल्ला, लाल गली, बंगाली क्लब और अब हर जगह गरबों की धूम होती है तथा रासरंग, उल्लास, अनेक संस्थाओं के गरबे बड़े आयोजन के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। सबको ज्ञात है कि यहां नवरात्रि शुरू होने के महिने भर पूर्व से ही रिहर्सल, तैयारियां शुरू हो जाती है। नवरात्रि से दशहरे का माहौल इसी वजह से बहुत उल्लासपूर्ण रहता है।

इंदौर का दशहरा पुराने समय से ही राजसी ठाट-बाट से परंपरागत तरीके से मनाते रहे हैं यहां के शहरवासी एवं आज भी उसी परंपरा  की झलक दशहरा उत्सव पर दिखाई देती है। पुराने समय में राजबाड़ा में मल्हारी मार्तण्ड मंदिर में पूजा पाठ के बाद होल्कर राजवंश के उत्तराधिकारी शीर्ष फिर मां अहिल्या की पालकी व राजचिन्ह के साथ अपनी परंपरागत पगड़ी व वस्त्रों को पहनकर अपने लावलश्कर जिसमें बैंड, मराठी जमाने के वाद्यों के साथ हाथी-घोड़े, ध्वज, निशान, शस्त्र  पूजन के पश्चात लाखों लोग जलसे के साथ दशहरा मैदान जाते थे, जहां पर पक्के चबूतरे पर शमी पौधे-छोटे वृक्ष का पूजन करते थे।

इसके पश्चात रावण दहन होता था। बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता था। वैसा ही वर्तमान समय में भी होता है।

इसी जलसे के साथ राम-लक्ष्मण-हनुमान एक बड़े रणगाड़े पर और बानर सेना के रूपधारी  व शस्त्रों के साथ अखाड़े होते थे।

रावण-दहन के पूर्व राम रावण का युद्ध रचा जाता था। वानर-असुर सेना के बीच लड़ाई दशहरा मैदान पर होती थी। इसके साथ एक ऊंचे स्थान पर बहुत ही ऊंचा 111 फीट का रावण

खड़ा होता था। पास के मंच पर रावण दहन समिति के पदाधिकारी होते थे व मंच से पूरे कार्यक्रम का बखुबी संचालन होता था। इस मौके पर खूब आकर्षक आतिशबाजी की जाती थी। पहले खेमा इंडस्ट्रीज व लक्ष्मीफायर वर्क्स, व अन्य के सौजन्य से यह कार्य आतिशबाजी का किया जाता था।

पैंसठ वर्ष पूर्व इंदौर में अन्नपूर्णा मंदिर के पास दशहरा मैदान पर शहर के एकमात्र रावण दहन का कार्यक्रम  होता था। राजवंश की पालकी, सवारी के प्रस्थान के समय जुलूस में इंदौर की लाखों जनता शामिल होकर दशहरा जीतने जाती थी। भीड़ इतनी की धक्का-मुक्की तक की नौबत यहां तक की पैर रखने की जगह मुश्किल से मिलती थी। समय के बदलाव में आज यह आलम दिखाई नहीं देता लेकिन दशहरे का उत्साह व भव्यता आज भी शहर में कायम हैं। 

उस वक्त का एकमात्र होने वाला रावण दहन शहर व आबादी के विस्तार के साथ प्रतिवर्ष बढ़ता रहा है। रावण दहन दशहरा मैदान से आगे वाले समय में तिलकनगर, जिंसी, इतवारिया बाजार, जीपीओ, खातीवाला टेंक, फिर पचासों जगह एवं अब जगह-जगह होने लगा है मगर दशहरा मिलन का उत्साह वहीं पुराने जमाने वाला वर्तमान में भी उन्हीं खुशियों को बढ़ाता हुआ कायम हैं।


                                           - मदन वर्मा " माणिक "

                                              (कवि एवं लेखक)

                                                इंदौर, मध्यप्रदेश