कम उम्र मे लत

आस लगी थी हमें 

,बिखेरा उसने था 


जीवन की प्यास, 

कहां बुझती है 


आँखो मे आसूं

 ,उसनें छिपाया था 


उल्फतों का सागर,

 जीवन मे आया था 


गुमशुदा थी राहें ,

मंजिलों का कहां ठिकाना था 


गैरतों के जमाने में 

,अपना कहां किसी में था 


चल पड़े थें राहों पें ,

अपना ना कोई सहारा था 


मंजिल ना मिली ,

तो खुदां ए कहां था 


प्यास जीवन की ,

कहां बुझती है 


उसनें मुझें ,

मयखाने मे बुलाया था 


खुदां का वास्ता 

,भूलूंगा ना तूझें 

जहन्नुम का रास्ता दिखाया था 


अनन्या गुप्ता