तलाश

वह कौन है जो मौन है

शीत शांत किंतु रौद्र है।

तलाश उसे करते नयन

सिंधु धरा पयोधि गगन।


सोकर भी आँखें थकी आज

ढूंढती रही स्वप्न में खोई सांझ।

गोधूलि पावस बेला अनुपम

रंगा हुआ अद्भुत रंगों से नभ।


हर्षाता हाय खूब हरित द्रुम

विटप विशाल विकसित विद्रुम।

भरी लबालब प्याली प्रीत की

वियोग विरह के रीत गीत की।


बिंदु बिंदु जोड़ स्मृतियां हे नाथ

रचते छवि तेरी यह पागल प्राण।

सांसें निष्फल कहीं हो न जाए

चिंतित चित्त केवल पीर बहाए।


असीम अनंत पथ पर बढ़ती

ठहरे कदम काल संग चलती।

समय चक्र है तीव्र गतिमान

खंडित प्रत्येक अहं अभिमान।


_ वंदना अग्रवाल "निराली" (लखनऊ)