पुरानी पेंशन योजना लागू करे केंद्र

पुरानी पेंशन योजना को लागू करने की मांग को लेकर रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में शासकीय कर्मचारियों का विशाल प्रदर्शन आयोजित किया गया था जिसमें 20 राज्यों के लाखों कर्मचारी शामिल हुए। इसका आयोजन नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के तत्वावधान में किया गया था। पेंशन शंखनाद महारैली के नाम से आयोजित इस रैली का उद्देश्य मौजूदा राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) के बजाय पुरानी पेंशन योजना को लागू करने के लिए केंद्र पर दबाव बनाना था। 

इतनी विशाल संख्या में हुए प्रदर्शन से साफ है कि कर्मचारियों का रुझान पुरानी पेंशन योजना की ओर है और उसे नयी पेंशन योजना बिलकुल रास नहीं आ रही है। इसे देखते हुए केन्द्र सरकार पुरानी योजना को फिर से लागू करना चाहिये क्योंकि वही कर्मचारियों के पसंद की है और उनके हित में भी। वैसे तो इस मसले को राजनैतिक दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिये लेकिन यह सच है कि नयी योजना को भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार व उसके शासित ज्यादातर राज्यों की सरकारों का समर्थन है। 

दूसरी तरफ जहां गैर भाजपायी सरकारें हैं और उन राज्यों के कर्मचारी हैं, वे पुरानी स्कीम चाहते हैं। राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और पंजाब में तो इसे लागू करने का फैसला भी लिया जा चुका है। रविवार को एकत्र हुआ कर्मचारियों का हुजूम बतलाता है कि यह मुद्दा न केवल इस साल होने जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों पर बल्कि 2024 में निर्धारित लोकसभा चुनावों पर भी असर करेगा।

उल्लेखनीय है कि 2004 में यूपीए की सरकार ने पुरानी योजना की जगह पर नई पेंशन योजना (एनपीएस) लागू की थी जो शेयर बाजार और अन्य निवेशों पर आधारित है। 

शेयर बाजार की स्थिति के आधार पर रिटर्न का भुगतान होता है। पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) में सेवानिवृत्ति के समय अंतिम मूल वेतन (बेसिक सैलरी) के 50 फीसदी तक निश्चित पेंशन मिलती है। एनपीएस में रिटायरमेंट के समय निश्चित पेंशन की कोई गारंटी नहीं होने से यह कर्मचारियों की पसंद नहीं रह गयी है। पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारियों के वेतन से कोई कटौती नहीं होती थी जबकि एनपीएस में कर्मचारियों के वेतन से 10 फीसदी की कटौती होती है। 

इतना ही नहीं, नई पेंशन स्कीम में ग्रेच्युटी प्राविडेंट फंड उपलब्ध नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम में यह सुविधा कर्मचारियों को मिलती है। पुरानी पेंशन योजना के और भी कई फायदे हैं। ओपीएस में रिटायर होने के बाद कर्मचारियों को चिकित्सा भत्ता और मेडिकल बिलों की सुविधा भी दी जाती है और सेवानिवृत्त कर्मचारियों को 20 लाख रुपये तक की ग्रेजुएटी की रकम भी मिलती है। 

इस योजना के तहत कर्मचारी को सेवानिवृत्ति के समय की तनख्वाह की आधी राशि के बराबर की पेंशन मिलती है जिसका निर्धारण तत्कालीन वेतनमान एवं महंगाई सूचकांक के अनुसार होता है। साथ ही, कर्मचारी की मौत होने पर यह राशि उसके परिजनों को दी जाती है। इस तरह देखें तो वर्तमान परिस्थितियों में यही पेंशन स्कीम कर्मचारियों के व्यापक हित में है। 

तत्कालीन सरकार ने जब इसे बन्द किया था तब का आर्थिक परिदृश्य काफी अलग था। देश की अर्थव्यवस्था बड़ी ऊंचाइयों पर थी। 1991 में आई नयी अर्थप्रणाली ने कार्पोरेट जगत को गतिशील बना दिया था जिसमें शेयर बाजारों में किया गया निवेश शर्तिया तौर पर फायदेमंद साबित होता था। 2008 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने निजी सेक्टर को काफी कमजोर किया था, बावजूद इसके कि भारत पर मंदी का बड़ा असर नहीं पड़ा था, लेकिन शेयरों में निवेश करना जोखिम पर आधारित अधिक हो चला था।

 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बनी भारतीय जनता पार्टी की सरकार के अदूरदर्शितापूर्ण निर्णयों से भारत की अर्थव्यवस्था मुठ्ठी भर कारोबारियों के लिये ही फायदेमंद रह गई है। पहले उद्योग-धंधों का स्वरूप विकेन्द्रित था। अब कुछ ही लोगों के शेयर उछाल मारते दिखते हैं जबकि ज्यादातर कम्पनियों के शेयरों में निवेश करना फायदे की गारंटी नहीं रह गई है। 

पुरानी पेंशन व्यवस्था की मांग करना एवं नयी योजना को नकारना दरअसल निवेश बाजार की गिरती साख का प्रतीक है। कर्मचारियों को पेंशन उनकी उम्र भर की कड़ी मेहनत से अर्जित की हुई होती है जिस पर उसकी सामाजिक सुरक्षा का पूरा भार होता है। इसी पेंशन के बल पर वे अपने बचे सपनों को पूरा करते हैं। बची आयु की रोजी-रोटी का जुगाड़ उसकी पेंशन से ही होता है और उसकी मृत्यु के बाद उसकी विधवा एवं नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण भी इसी के जरिये सम्भव है। 

इस मुद्दे को इस लिहाज से नहीं देखा जाना चाहिये कि इसे किसने लागू किया या बन्द किया। इसका सम्बन्ध लाखों शासकीय कर्मचारियों के जीवन से जुड़ा हुआ है। कुछ अरसा पहले राजस्थान में पुरानी पेंशन की बहाली का ऐलान सर्वप्रथम हुआ जिसका वहां के कर्मचारियों ने दिल से स्वागत किया है। हिमाचल प्रदेश के कर्मचारी भी इससे खुश हैं। छत्तीसगढ़ में भी यही स्थिति है। 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पुरानी स्कीम का समर्थन करते हुए केन्द्र सरकार से निवेदन किया है कि दिल्ली के कर्मचारियों को पुरानी योजना के अनुसार पेंशन देने का ऐलान करे। कर्मचारियों की मांग जायज है अतः केन्द्र सरकार को चाहिये कि उनकी इच्छा के अनुरूप पुरानी पेंशन योजना बहाल करे। 

देखना होगा कि सामान्य रूप से जायज मांगों को पूरा करने में अपनी हेठी समझने वाली मोदी सरकार इस बार कर्मचारियों की बात मानती है या नहीं। उन्हें इस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिये। इससे राजकोष पर भार तो बढ़ेगा लेकिन कर्मचारियों के व्यापक हित में उसे इस पहलू पर ध्यान नहीं देना चाहिये।

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