भू-जल।

यह एक सन्देश देने का,

उद्घोष है,

प्रकृति और पर्यावरण में,

खुशियां और सुकून लाने का,

उत्तम उपदेश है।

यहां पृथ्वी तबाही का,

मंजर देख रहा है,

सपनों को साकार करना,

छोड़ कर अपने किस्मत पर,

रो रही है।

सम्पन्नता अब कहां रहीं,

दुख और सुख में,

संघर्ष है छिड़ी।

अतीत को भूलकर वर्तमान में,

विश्वास करना होगा।

नवीन सृजन करने में,

सबसे आगे रहना होगा।

यह एक सुखद अहसास दिलाने में,

अहम् भूमिका निभाएंगी।

खुशबू देने वाली ताकत बनकर,

जनजन तक पहुंचाएगी।

उल्लास और विश्वास बढ़ेगा,

उत्तम स्वास्थ्य और परिवार को,

समृद्ध धरती पर,

खुशहाली और सुकून दिखेगा।

जल संसाधन में बढ़ोतरी होंगी।

पर्यावरण में खुशहाली,

तेज़ी से आने लगेंगी ।

वर्षा ऋतु अपना हाथ बढ़ाएगी,

समस्त संसार में,

उल्लास और उमंग की,

बरसात आएंगी।

अत्यधिक दोहन पर लगाम लगेगी,

भूजल स्तर पर गम्भीरता से,

सरकारी प्रयास दिखेंगी।

यह एक सुखद प्रवास होगा ,

जनजन तक सुखद,

विश्वास बढ़ेगा।

डॉ० अशोक, पटना, बिहार।