देवी कुष्माण्डा

हलू-हलू हँस-हँस के ये दुनिया ल बनाए।

जग जननी, आदिशक्ति, कुष्माण्डा कहाए।।


जम्मों कोती छाए रहिसे बिकट अँधियारी।

अपन दैवी शक्ति ले करे दिब्य उजियारी।।


तोला आठ भुजा के कारन अष्टभुजा कहिथें।

सात हाथ म सस्त्र धरे, आठ म माला रहिथे।।


तोर सवारी हे दाई जंगल के राजा जबर शेर।

बचाए बर आथच गरीब, दुबर के सून के टेर।।


देबी तैंय सुरुज के भितरी लोक म रहिथच।

उजास अउ जोति ल दसों दिसा म बहाथच।।


मैंय धीर अउ निरमल मन ले करहूँ तोर सेवा।

भगत के रोग, दुख, उदासी ल दूर कर देवा।।


जुग-जुग जियौंव, बल, बुद्धि के हो बिकास।

झटकुन खुश होबे दाई, छुवौंव मैंय अगास।।


कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़

जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई।