कॉन्डम

जॉनी मेडिकल स्टोर चलाता है। आज उसकी दुकान पर एक लड़की आकर कॉन्डम खरीद ले गई। यह उसके लिए आम बात थी। लेकिन लड़की जब कॉन्डम खरीद रही थी, वहीं एक बूढ़ा भी था। लड़की के जाने के बाद उसने जैक से कहा – बड़ा अजीब जमाना आ गया है। लड़कियाँ खुल्लम खुल्ला कॉन्डम खरीद रही हैं। लोक हया, लाज, बेशर्मी नाम की कोई चीज़ ही नहीं रह गई। एक हमारा जमाना था जब लड़कियाँ घर की चौखट से बाहर नहीं निकलती थीं। घर की इज्जत घर के भीतर सुरक्षित रहती थी। अब देखो कैसे बेशर्मों की तरह कॉन्डम खरीद ले जा रही हैं। लगता है जवानी बड़ी फड़फड़ा रही है।

जॉनी बूढ़े की बात सुन मुस्कुराकर कहने लगा – “अंकल! इसमें गलत ही क्या है? आदमी को जैसे भूख लगती है तो खाना खाता है। प्यास लगती है तो पानी पीता है। घूमना चाहता है तो घूमता है। खेलना चाहता है तो खेलता है। झूमना चाहता है तो झूमता है। इसमें लिंग, जात-पात, ऊँच-नीच, भेदभाव की बात कहाँ से आती है। सेक्स करने की फीलिंग पर क्या केवल लड़कों का ही अधिकार है। क्या लड़कियों की कोई फीलिंग नहीं होती है?”

बूढ़े ने कहा - “बेटा! इतना मैं भी जानता हूँ। ये बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं। मैं भी पढ़ा-लिखा हूँ। लेकिन मेरी पढ़ाई आज की पीढ़ी की तरह बेशर्म बनाना नहीं सिखाती। और तुम हो कि उस लड़की का पक्ष ले रहे हो। हाँ लोगे भी क्यों नहीं। तुम भी तो इसी पीढ़ी के हो। मैंने कब कहा कि लड़की की कोई फीलिंग नहीं होती। होती है। और होनी भी चाहिए। लेकिन यह फीलिंग भी लड़कियों वाली होनी चाहिए। जैसे चूड़ी, मेहंदी, पार्लर, खाने-पीने की चीज़ें माँगती तो कुछ समझ आता। लेकिन इस तरह कॉन्डम खरीदना कहाँ तक सही है?”

जॉनी ने मुस्कुराकर कहा - “इसका मतलब कॉन्डम केवल लड़के खरीदना चाहिए! क्या आप यही कहना चाहते हैं?”

बूढ़े ने कहा - “बिल्कुल! यदि लड़का कॉन्डम खरीदता है तो वह उसकी मर्दानगी की निशानी है। मतलब वह जवान हो रहा है। लेकिन इस तरह लड़कियों का कॉन्डम खरीदना कहाँ तक सही है। यह इनकी गलती नहीं है। इनके माँ-बाप की गलती हैं, जो उन्होंने इन्हें इस तरह बना रखा है?”

इस बार जॉनी गंभीर हो गया। उसने कहा - “अंकल! क्या आप महिला सशक्तीकरण के बारे में जानते हैं?”

बूढ़े ने कहा - “हाँ! लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि खुल्लम खुल्ला कॉन्डम खरीदते फिरो। अपनी जवानी का बेशर्मी से से ढिंढोरा पिटवाओ। पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़े होना। माता-पिता का कहा मानना। शादी के बाद ससुराल के हिसाब से संस्कार के साथ रहना असली महिला सशक्तीकरण है।”

जॉनी इस बार चुप रह गया। वह जनरेशन गैप के साथ-साथ देश में बढ़ रहे बलात्कार के मामलों, लड़कियों पर हो रहे अत्याचारों और उनके लिए लक़ीर खींचने वालों के मौन प्रतिनिधि के रूप में दुकान से जा रहे बूढ़े की पीठ को टकटकी लगाए देखता रह गया।

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, चरवाणीः 7386578657