तीन सौ साल पुराने चम्पा के पेड़ के नीचे विराजमान है खेडापति माता मैया

ग्राम रोंढा में चम्पा के फूलो से सज जाता है खेडाति माता रानी का दरबार 

बैतूल : जहां एक ओर वंदावन - मथुरा में यमुना नदी के किनारे कदम का पेड़ है वही दुसरी ओर ताप्ती तट  से महज १२ किलो मीटर दूर बसे बैतूल जिले के प्राचिन गांव रोंढ़ा में लगभग 300 सौ साल पुराना चम्पा का पेड़ है जिसके नीचे खेडापति माता मैया विराजमान है। 

बैतूल जिले के नामचीन लेखक साहित्यकार पत्रकार ताप्ती भक्त रामकिशोर दयाराम पंवार की जन्म भूमि ग्राम रोंढ़ा में उनके पैतृक मकान से लगा माता मंदिर का चबुतरा और उससे लगा वह चम्पा का पेड़ आज भी अनेकोनेक लोगो के बचपन का साक्षी है। 

किसी शायर ने कहा है कि यादो को जिंदा रहने दो , क्या पता कब तुम्हे अपना वह बचपन याद दिला दे.... इन्ही यादो से जुड़ा चम्पा का पेड़ आज पूरे बैतूल जिले में आस्था एवं श्रद्धा के साथ चमत्कार से जुड़ा एक सप्रमाण साक्ष्य है। जिसे दुनिया की कोई भी कोर्ट झुठला नहीं सकती। एक बहुंत पुरानी फिल्म मेरा गांव - मेरा देश  ठीक उसी परिवेश में मेरा गांव और मेरा चम्पा का पेड़ गांव के अनेकोनेक लोगो के बचपन की उन खटट्ी - मिठठ्ी यादो को बरबस याद दिलाता रहता है। 

नटखट बचपन की शरारते और चम्पा के पेड़ की डालियो पर उछल कूद अब कहां संभव है। मंदिर के पूनःनिमार्ण के बाद माता मैया के चबुतरे में बना आला आज भले न रहा पर उस पेड़ को सुरक्षित रखने का काम किया गया जो कि इस गांव की ही नही बल्कि पूरे बैतूल जिले की बेमिसाल धरोहर है। चैत्र मास की नवरात्री में जब गांव के महिलाये मातारानी को भेट देने के लिए अपने घरो से रोज पुड़ी और खीर लाती थी। उस समय शक्कर की जगह गुड का उपयोग होता था। 

कभी कुम्हड़े की तो कभी चावल की खीर को को आज भी गांव का बचपन चढ़ाने के बाद खाता दिखाई देता है। पहले गांव में हर नवरात्री पर गोंदर हुआ करते थे जिसमें गोंदरे इस चम्पा के पेड़ के नीचे रात भर सोगा मोर जैसी दर्जनो कहानियां सुनाया करते थे। आज कहानी तो दूर आरती तक नहीं होने से मातारानी के वजूद में कोई फर्क नहीं आया लेकिन गांव कोई न काई मुसीबतो के चलते छटपटता मिल जायेगा। पहले इास गांव में हर घर में ढोलक - मंजीरे - खंजरी हुआ करती थी जिस की थाप पर पूरा गांव झुम उठता था।

जहाँ एक ओर लोग सड़को और मकानो तथा दुकानो के लिए हरे भरे पेड़ो को बेरहमी से काटते चले आ रहे है वहीं पर बैतूल जिला मुख्यालय से महज़ मात्र ९ किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम रोंढ़ा में एक चम्पा का पेड लोगो की आस्था एवं विश्वास का केन्द्र बना हुआ है। ग्राम पंचायत रोंढा में जन्मे मेरे बाबू जी परम श्रद्धेय श्री दयाराम जी पंवार जो कि वन विभाग मे वनपाल के पद से सेवानिवृत होने के पूर्व ही अपने पुरखो के पैतृक मकान से लगे इस पेड की छांव के नीचे विराजमान गांव की चमत्कारी खेडापति माता मैया के मंदिर के पुनरू निमार्ण के लिए अपनी उक्त भूमि को दान में दे चुके थे।

 माता रानी का खण्डहर में तब्दील हो चुके चबुतरे को मंदिर का परकोटा बनाने का पूरे परिवार का संकल्प काफी दिनो बाद मूर्त रूप में बदला।  इस चबुतरे पर लगे चम्पा के पेड की उम्र लगभग सौ साल से ऊपर बताई जाती है। यह मैं नहीं कहता मेरे ही गांव रोंढा की ७४ वर्षिय श्रीमति गंगा बाई देवासे जो कि ठीक मंदिर के सामने बने मकान में रहती है वह बताती है कि वह जब ससुराल आई थी तब भी यह चम्पा का पेड इसी स्थान पर था। श्रीमति गंगा बाई के अनुसार लगभग सोलह साल की उम्र में उसकी शादी हुई थी। उस समय से इस पेड को इसी स्थान पर देखते चली आ रही है। 

नाती - पोतो की हो चुकी श्रीमति गंगा बाई के घर पर उस चम्पा के पेड का डालिया आज भी फूलो की बरसात करते चले आ रहे है। इसी ग्राम रोंढा में जन्मी श्रीमति गंगा बाई का जन्म गांव के ही दुसरे मोहल्ले में हुआ था। वह बताती है कि उसके घर के पास स्थित इस चम्पा के पेड़ के नीचे से कभी हाथी आया - जाया करते थे। लेकिन चम्पा के पेड़ की एक डाली इस तरह झुक गई कि आदमी अगर उस पेड़ के नीचे से निकलते समय झुक कर ना चले तो उसका सिर टकरा जाता है। 

गांव की सर्वाधिक लोकप्रिय बिजासन माई - माता मैया कहलाने वाली इस खेडापति माता माँ के चबुतरे पर लगे इस पेड को कुछ लोगो के द्धारा काटने का भी प्रयास किया लेकिन पूरे दिन भर तीन लोग मिल कर भी पेड की एक डाली काट नहीं पाये। चम्पा के पेड को काटने वालो में स्वंय के बेटे के भी शामिल होने की बात कहने वाली श्रीमति गंगा बाई देवासे के अनुसार शाम को पेड काटने वाले इस तरह बीमार हुये कि छै माह तक उनका इलाज चलता रहा। 

जब दवा -दारू से लोग ठीक नहीं हुये तब दुआ ही काम आती है अंत में गांव के उन तीनो युवको ने माता माँ से एवं उस चम्पा के पेड़ के पास माफी मांगी और पूजा - अर्चना की तब जाकर वे ठीक हो सके। गांव के एक ही परिवार के दो मुखिया इसी पेड की डाली को काटने के चक्कर में अकाल मौत के शिकार हो चुके है। ग्रामिणो की बात माने तो पता चलता है कि इस तरह की घटना के बाद से उस गली से चौपहिया वाहनो एवं बैलगाडी का निकलना तक बंद हो गया। 

गांव के लोग उस चम्पा के पेड़ के लिए गांव की गली को सड़क तक बनाने के लिए सहमत नहीं हो पा रहे है। गांव की उस गली को पक्की सीमेंट रोड बनाये जाने का प्रस्ताव पास होकर पड़ा है लेकिन सभी के सामने समस्या यह है कि उस पेड़ को आँच न आये और सड़क बन जाये। ग्राम पंचायत रोंढा के उस वार्ड के भूतपूर्व पंच भगवान दास देवासे के अनुसार ग्राम के लोगो की आस्था के केन्द्र बने इस चम्पा के पेड से लगे माता मंदिर का चबुतरा भी बनाया जाना है जिसके लिए गांव के ही मूल निवासी सेवानिवृत वनपाल मेरे बाबूजी श्री दयाराम पंवार द्वारा गांव के अपने पैतृक मकान की भूमि माता माँ के मंदिर व चबुतरे के लिए दान में दी है। 

आज उस स्थान पर गांव की रक्षक माता रानी का भव्य मंदिर बन चुका हैै। मंदिर के निमार्ण कार्य में इस बात का विशेष तौर पर ध्यान रखा गया है कि माता रानी के ऊपर बरसने वाले चम्पा के फूल् बरसे जिसके लिए मंदिर को पेड की गुलाई के हिसाब से बनवाया गया है। मंदिर का काफी ऊपरी भाग को छोडऩे के पीछे चम्पा के फूलो का साल भर माता रानी पर बरसते रहने का रास्ता है। 

लोगो की आस्था का एवं विश्वास का केन्द्र बने चम्पा के पेड के प्रति पूरे गांव का प्रेम ही उसकी सुरक्षा करेगा। अब गांव का कोई भी व्यक्ति उस पेड़ को काटने या उसकी डाली को छाटने की बात नहीं करता। मेरे अपने गृह ग्राम रोंढ़ा के चम्पा के पेड़ की उम्र के बारे में जयवंती हक्सर महाविद्यालय के वनस्पति शास्त्र के प्रोफेसर कहते है कि यह वास्तव में अजरज वाली बात है क्योकि चम्पा के पेड़ की आयु इतनी अधिक नहीं होती जितनी बताई जा रही हे।

 उनके अनुसार पेड़ को माता रानी पर प्रतिदिन चढ़ाया जाने वाला पानी एवं वहां की जमीन से पौष्टिक आहार मल रहा होगा जिसके चलते वह अपनी आयु को दिन प्रतिदिन बढ़ाता चला जा रहा है। बैतूल जिले के छोटे से सर्वाेदयी गांव रहे रोंढा में संत टुकड़ों जी महाराज एवं भूदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के कभी पांव पडे थे। बैतूल जिले के इस ग्राम पंचायत रोंढा के उस सौ साल से अधिक उम्र के चम्पा के पेड़ को देखने के लिए लोग दूर - दूर से आते रहते है। 

वैसे भी जब - जब चमेली के फूलो की बाते चलेगी तो चम्पा के फूलो का जिक्र होना स्वभाविक है क्योकि चम्पा के पेड़ के तीन गुण विशेष है पहला रंग - दुसरा रूप - तीसरा यह कि इस फूल की सुगंध नहीं आती है। इस फूल पर कभी भवंरा नही मडराता। गांव के लोगो के अनुसार गांव में चम्पा का एक मात्र पेड़ है जो कि अपनी उम्र के सौ साल पूरे कर चुका है। पेड़ों से इंसान का रिश्ता नकारा नहीं जा सकता। 

आज शायद यही कारण है कि लोगो की आस्था एवं विश्वास तथा श्रद्धा के इस त्रिवेणी संगम कहे जाने वाले पेड़ में कड़वी नीम के पेड़ की एक नई फसल उगने के बाद पेड़ बनती जा रही है इसके बाद भी कड़वी नीम की कड़वाहट इस चम्पा के पेड़ के फूलों में न आने वाली सुगंध में पर कोई असर कर पाई है।