शक्ति, भक्ति और दिखावा।

यह नम्रता और सुचिता को,

सादर आभार है।

दैवीय शक्ति को सम्बल,

हृदय पुष्प से किया जाता,

अपूर्व दर्शन संग सत्कार है।

शक्ति और भक्ति का,

अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है।

सबमें मधुर संगीत जैसी,

दिखता अटूट सम्बन्ध है।

शक्ति को सम्बल बनाने के लिए,

भक्ति रस एक आधार है।

समर्पित भाव से सना रहने पर,

भक्ति करने का मिलता,

हृदय से नवीन अधिकार है।

यहां अन्तर्मन से निकलीं आवाज,

मजबूत इरादों से सना,

हुआ सदैव रहना चाहिए।

जानबूझकर कोई प्रपंच और ग़लत आधार,

बिल्कुल नहीं रहना चाहिए।

यहां दिखावा और उसके असर का,

नहीं दिखता प्रभुत्व व प्रभाव है।

माता रानी नहीं करती है स्वीकार्य,

ऐसे लोगों का कभी आभार है।

यह दुनिया को अलविदा कह,

कभी कहीं जाने नहीं देती है।

खुशियां और सुकून देने वाली ताकत बनकर,

सदैव साथ ही रहने की कोशिश कर,

खुशहाली और उमंग भरने में,

सबसे पहले और अव्वल रहते हुए,

सर्वोत्तम संस्कार में पहुंचकर ,

सबके सामने शामिल हो जातीं है।

शक्ति और भक्ति एक अनमोल उपहार है,

दिखावा और उसके प्रयास की कोशिश,

नहीं जगत-संसार में कोई,

किसी भी स्थिति में स्वीकार है।

डॉ ०अशोक,पटना,बिहार।