माँ महागौरी

गोरिया बरन उज्जर रुप के कारन महागौरी कहाथे।

संख, चंदा अउ मोगरा फूल ले तोर उपमा दे जाथे।।


तोर गहना-गोटी अउ कपड़ा सादा हे श्वेताम्बरधरा।

बइला के सवारी करथच दाई वृषारूढ़ा शक्ति परा।।


सांत मुदरा म बइठे अन्नपूरना, चार भुजा म दिब्यमान।

डमरू अउ तिरछुल धरे, अभय, वर के देथच बरदान।।


भोले बबा के खातिर गौरी ह, बिकट तपसिया करिस।

गंगाजल ले धोके करिया देंह ल, चमकदार कर दिस।।


अचूक फलदायिनी, सेउक मन के पाप ल धो देथच।

सेवा ह कल्यानकारी हे, किरपा ले सिद्धि ल पवाथच।।


जेन माईलोगिन,माता के पूजा, भकती भाव ले करथे।

ओखर सुहाग के रक्छा बर, देबी ह खुद परगट होथे।।


कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़

जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई।