कुनबे से निकला मैं सब छोड़-छाड़ के
उसने न साथ दिया दिल तोड़-ताड़ के
अंधियारे से हमारी दोस्ती हुई जब से
उजाले भी चले गये सब छोड़-छाड़ के
इंतजार में कटती रहेगी अब ये जिंदगी
इसके सिवा रब से कोई भी नहीं बंदगी
वो खो गई कंही तो बिना भीड़-भाड़ के
उजाले भी चले गये सब छोड़-छाड़ के
मुद्द्त से राज जिसने किया इस दिल पर
वो दुबारा नजर आई नहीं अब कंही पर
यादों को सब छोड़ दिया मोड़-माड़ के
उजाले भी चले गये सब छोड़-छाड़ के
जीवन मे अब तो कोई भी तमन्ना ना रही
कटने को तो जिंदगी बस कटती ही रही
जख्म बस सिते रहें दिल जोड़-जाड़ के
उजाले भी चले गये सब छोड़-छाड़ के
रचनाकार
प्रमेशदीप मानिकपुरी
आमाचानी धमतरी छ.ग.
9907126431