हर बार गलती रावण की नही रहती

सीता जितनी पवित्र थीं अयोध्या मे उतनी ही पवित्र रहीं वो लंका में, 

क्योकि जो हर ले गया था सीता को, 

नाम उसका रावण था सिर्फ जात से ही नही धर्म से भी वो ब्राह्मण था , 

पर नही था वो अपने कर्मों से ब्राह्मण, 

रूप सुंदरी का देख रावण अपने ह्दय को रोक न पाया था, 

मनसा थी बना लेने की महारानी लंका की, 

लेकिन रावण विद्धवान था वेदों का उसे ज्ञान था

मर्यादित रहा रावण भी क्योकि पतिव्रता सीता के सामने वो बाध्य था, 

वो तो त्रेतायुग का रावण था जिसे आज भी जलाया जाता है

और विडंबना तो देखो कलयुग का रावण ही उसे जलाता है

खूब होती है आतिशबाजी जय श्री राम का जयकारा लगाया जाता है

और फिर उसी चौरस जगह पर, कोई रावण किसी सीता को ताड़ता है

बनाना चाहता है एक रात की रानी हवस मिटाना चाहता है

पर हर बार रावण की गलती  नही होती 

पतिव्रता भी न रहीं अब कुछ कलयुगी सीता भी

अब नही हरते रावण सीता को,

सीता खुद खोज लेतीं हैं हरने के लिए रावण को..!! 


स्वरचित् और मौलिक

सरिता श्रीवास्तव 'सृजन'

अनूपपुर मध्यप्रदेश