यह प्राण तेरा

यह प्राण तेरा, वैभव न्यास

मुक्ताहल मुकुल, मृदुल विन्यास।

पल पल पुलक पुंज इक स्वपन 

होगा मोह मुकुर माटी यह तन।


गिनना हंसते अधरों की कंपन

सुनना रोते पलकों की स्पंदन।

मुरझाई कलियों के विस्मित स्मित

दीप दीप्ति के झिलमिल झिलमिल।


पतझर, बसंत, सावन आषाढ़

निरुपम क्रंदन हास विलास।

टूटेगा दर्पण दीन दुःख पार

होगा मिलन है जो आत्मसात।


प्रतिध्वनि प्रतिबिंब से पुलकित परिणय

जन्म - मृत्यु से मुक्त भ्रमित जीवन।

काया छाया होगी सब वीतराग

परमेश्वर परम प्रेम अमिट सुहाग।


_ वंदना अग्रवाल "निराली "(लखनऊ)