रौंद मुझे हंसने वाले

मेरे लबों कि मुस्कुराहट लगता अब तो जैसे कहीं खो गई।

यूं लगे मुझको की मेरी कलम ही मेरे दर्द की दवा हो गई।।

कितने हसीन ख्वाब संजोए थे मैंने जिंदगी मे अपने कभी

टूटा हर एक ख्वाब मेरा, आज मेरी जिंदगी तबाह हो गई।।

सोचा था कभी खुद को सोलह श्रृंगार से हर पल सजाएंगे 

ये सौलह श्रृंगार मेरे लिए बना नहीं सोच अंखियां रो गई।।

अच्छा लगता था जब मेरी पायल छेड़ती थी तेरे नाम लेके

आज मेरे नाम संग तेरा नाम जुड़ा देख मुझे नफरत हो गई।।

मेरी ख्वाहिश, अंतर्मन को रौंद के हंसने वाले मेरे क़ातिल

जीते-जी तू भी कभी तड़पेगा, वीना आह दे तंहा सो गई।।

वीना आडवाणी तन्वी

नागपुर, महाराष्ट्र