खाऊ भैया...

यों तो उनकी उम्र हमेशा ‘खाऊजी’ जी की रही है लेकिन लोगों के बीच कहाते सेवक ही हैं। अभी भी कहीं कहीं ऐसे आदमी को लोग खाऊजी कहने लगते हैं जो जरा सा भी डकार मार ले, भले ही वो कई दिनों का भुक्खड़ हो। खाऊगिरी से खाऊजी का कोई संबंध नहीं है। आपके हमारे जैसे आदमी उस वक्त आहत हो सकते हैं जब कोई आम आदमी भरी सभा में ‘खाऊजी’ का भाटा मार दे, लेकिन खाऊजी पक्के खाऊजी हैं, उन्हें कुछ नहीं होता। दिनभर में उन्हें जितना भी खाऊजी मिलता है सब झोले में भर कर ले आते हैं।

 जैसे कई लज्जाहीन और ढीठ किस्म के सुबह घुमने निकलते हैं और घर घर फूल चुराते थैली भर कर लौटते हैं। कोई मना कर दे, डांट दे या जूता ही उठा कर मार दे तो भी वे बुरा नहीं मानते हैं। हां, जवाबी कार्रवाई में वे अगले दिन आधा घंटा पहले सैर पर निकलते हैं और दुगनी फूलखोरी के साथ लौटते हैं। 

बहरहाल, बात खाऊजी की चल रही थी। एक दिन हमने उनसे पूछा कि आपको अंदर से कैसा लगता है जब कालोनी के खाऊजी लोग भी आपको ‘खाऊजी’ बोलते हैं ! 

वे बोले - ‘‘ साहस उनका है, यह सवाल आपको उनसे पूछना चाहिए। लेकिन आपकी जिज्ञासा सही है। हम भी सोच रहे हैं कि खाऊजी का मान रखने के लिए हमें कुछ करना चाहिए। ’’

 ‘‘ चलिए देर आए दुरुस्त आए। क्या करने का विचार है ? ’’

‘‘ सोचते हैं कि पेट रख लें। रोज रोज वाकिंग करने का झंझट भी मिटेगा और नहीं जानने वालों को सुविधा हो जाएगी, वे एक झटके में हमें पहुँचे हुए खाऊजी भी समझ लेंगे। क्या कहते हो ? आइडिया कैसा है ?’’

 ‘‘ आइडिया तो जोरदार है पर आप खाते तो हैं नहीं !’’

‘‘ हैं तो हम खाऊजी भी नहीं, पर लोग कहते और मानते हैं। खाऊकार-टाइप दिखने लगेंगे धीरे धीरे लोग अपने आप खाऊकार समझने-कहने लगेंगे। असल बात टाइप होना है। जैसे पहले कोई साहित्यकार नहीं होता है लेकिन हरकतें साहित्यकार-टाइप करता है तो लोग  उसे साहित्यकार मानने लगते हैं। टीशर्ट-जींस पहनने की उम्र में किसी को  को कुर्ता-पजामा पहन कर बांह चढ़ाना पड़ती है तो किस गरज से ? अगर आप पंडित-पुजारी टाइप रहने लगो तो लोग अपने आप ‘पाय-लागी’ बोलने लगेंगे, कोई पकवानों की लिस्ट  नहीं पूछेगा।’’ जवाब में खाऊजी ने लंबा भाषण दे दिया।

‘‘ फिर भी किसी ने पूछ लिया कि इन दिनों आप क्या खा रहे हैं तो क्या जवाब देंगे !’’

कुछ देर का विराम ले कर वे बोले- ‘‘ देखो भाई, सारे सवालों का स्वाभाविक उत्तर पेट होता है। आज दुनिया सुखी या नेता को किसी और चीज से नहीं, पेट से पहचानती है। आपने किसी पेट वाले से पूछा कि आप पेटू हो, खाऊ हो, लूटखोर हो, हजमखोर हो, या जो हो उसका कोई प्रमाण दोगे ? नहीं ना ? अब तो पेट देख कर जनता कुर्सी तक दे देती है। सदियों से प्रजा को पेट पर भरोसा है। .... फिर भी तुम्हारा प्रश्न  बेकार नहीं है। एक बार पेट ठीक से फूल जाएगा तो हम कुछ  बनावटी डकारें भी छोड़ने का करतब दिखायेंगे । बहुत से हैं जो बिना पेट के नेता बनने का भ्रम पाल लेते हैं और उन्हें कोई नेता नहीं मानता है। नेता वही होता है जो भोजन के सिवाय सब कुछ खाता हो। वही तो सच्चे अर्थों में खाऊजी कहलाता है। चलिए दो लाइन से हमारा लोहा भी मानिए -

खाऊजी पेट पालिए, और न पालिए कुछ।

पाले पेट जग पूजे, और न देखे कुछ ।।  

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, चरवाणीः 7386578657