भूख और भुखमंगे

बात भूख से शुरू की जाए, वह धीरे-धीरे रोटी तक पहुँच जाएगी । या रोटी से शुरु करें और वह भूख तक पहुंचे । या रोने-बिलखने की चर्चा की जाए। भूख झगड़े-फसाद का जड़ है। इस कारण सदैव यह गरमागरम मुद्दा बनकर रहता है। माइक्रोवेव ओवन में जैसे कोई चीज गरम रहती है, ठीक उसी तरह गरीब देश में भूख का मुद्दा सदैव गरम रहता है। चुनाव के समय भूख का मुद्दा हमेशा उठता है। चुनाव होने के तुरंत बात सबसे पहले वही मुद्दा बैठता है। भूख कथा अनंता। यह मिटने के सिवाय सब कुछ कर सकता है।

सवाल क्या है, रोटी या भूख? भई, इस देश में कुल मिलाकर विषय एक ही होता है - भूख। सारे सवाल उसी से जन्म लेते हैं। कहानी कह लो या उपन्यास, बात वही होगी। भूख मिटाने की बात करने वाले बातें कहते रहें, पर यह न सोचा कि भूख मिट गयी, तो लेखक लिखेंगे किस विषय पर? उन्हें लगा, ये साहित्यवाले लोग 'भूख मिटाओ' के खिलाफ़ हैं।

भूख कभी नहीं मिट सकती। भूख से चालू होकर रोटी तक का सफर तय करना होता है। भूख मिटाने वाला खुद की भूख मिटाने के चक्कर में नेता बन जाता है और उसकी भूख भुखमंगे से भी अधिक हो जाती है। 'पद और माल' की भूख रोटी से भी बड़ी होती है। भुखमंगे नेताओं के पैरों तले बैठे रहते हैं। 

यह सोचकर बैठते हैं कि कहीं नेता के मुँह से कोई निवाला नीचे गिरे तो वे उसे उठाकर खा लें। प्रायः ऐसा नहीं होता है। चूँकि नेता रोटी के बजाय पिश्ता-बादाम खाते हैं, सो यह भुखमंगों के लिए बदहजमी का कारण बन जाता है। रोटी खाने वाले घांस-फूस खा सकते हैं। धूल फांक सकते हैं, किंतु पिश्ता-बादाम जैसी चीज़ों का सेवन कर मौत को गले लगाने का साहस नहीं कर सकते हैं। एक बार पिश्ता-बादाम की लत लग जाने पर रोटी माहूर लगने लगती है।  

गरीब नेता के सामने गिड़गिड़ाता है। कहता है ज्यादा खाने पर सेहत को नुकसान हो सकता है। किंतु नेता गण हैं कि वे डायटिंग पर भरोसा नहीं करते। तबीयत से खाते हैं, हुकुम चलाते हैं। अब निरन्तर लूटपाट कर खाते रहने से बदन में अहंकार आ जाता है। भुखमंगे को लूटपाट से क्या करना। उसे चाहिए एक अदद रोटी का टुकड़ा। एक निवाला खाया, खुश रहे। उसे दूसरों से क्या लेना-देना।

 इस पूरे दृष्टांत को राष्ट्रीय दृष्टिकोण से सोचने की आवश्यकता है। भुखमंगों के कारण देश का कितना नाम खराब होता है। भुखमंगे शत्रु हैं। रोटी न मिलने की शिकायत लिये आए दिन सड़कों पर चले आते हैं। इनके चलते चंद्र लोक पर छोड़ा गया चंद्रयान भी लज्जित होने लगता है। भुखमंगे यह क्यों भूल जाते हैं कि भूख का संबंध केवल शरीर से है, जबकि वाहवाही का संबंध तन और मन से। गौर से देखा जाए तो देश का जितना नाम होता है, उतनी ही भूख समाप्त होनी चाहिए।    

समस्याओं का देश से और भुखमंगों का भूख से चोली दामन का साथ होता है। यदि इनका साथ छूट जाए तो देश और भूख का महत्व समाप्त हो जाएगा। देश और भूख प्रेरणा के द्योतक है। इनका महत्व कभी कम नहीं होना चाहिए। ये सदा बने रहना चाहिए। भुखमंगों में देश की सेवा करने के प्रति जो जीजिविषा होती है, वह अन्यों में नहीं होती है। अतः उनकी भूख मिटाकर देश को खतरे में नहीं डाला जा सकता है। भूख चाहे जैसी भी हो वह हमेशा व्यवस्था में बनी रहनी चाहिए। तभी देश का कल्याण संभव हो सकता है। 

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, प्रसिद्ध नवयुवा व्यंग्यकार