रावण देखने का भी अलग क्रेज रहता था, पहले......!

साठ-सत्तर के दशक में नवरात्रि में किराये की साईकिल लेकर कभी देवास वाली माता, कभी इंदौर की बीजासन माता कभी अन्नपूर्णा माता के मंदिर घूमने जाते थे। इसलिए कि अन्नपूर्णा मंदिर के निकट दशहरा मैदान था, आज भी है। वहीं पर रावण व उसकी लंका का निर्माण होता था। उस वक्त भी इंदौर शहर में ही रहते थे, आज भी वहीं हैं।

अपने दोस्तों के साथ घूमते थे। पहले इंदौर में एक ही रावण बनता था। फिर तिलकनगर में भी बनने लगा। दशहरे मैदान का रावण सबसे ऊंचा बनता था। कभी सौ फीट तो कभी एक सौ ग्यारह फीट ऊंचा। उस वक्त रावण देखने का भी एक अलग ही क्रेज रहता था। कितना बना, सिर बना, बीच का भाग बना, दोनों को जोड़कर साईड में कभी लिटा दिया, कभी बैठा दिया। 

पास में उसके सिर पर लगने वाले गधे के सिर की मूंडी रखी हुई हैं।। लंबी सी तलवार भी रखी हुई है। बाद में उसकी दोनों टांगें बनाई जा रही हैं। साईड में लंका बना दी गई व अब उसकी पुताई हो रही है। लंका तान दी हैं। जो दोसौ-ढाई सौ फीट व तीन मंजिली लंबी है। यह कार्य नवरात्रि में दशहरा मैदान आते-जाते देखते थे।

उसका मजा ही कुछ और था। जैसे-जैसे दशहरा निकट आता‌।

रावण पूर्ण होता जाता। दशहरे के दिन रावण व उसकी लंका पूर्ण स्वरुप में खड़ी दिखाई देती। पूरे मैदान को कवर किया जाता। स्वागत समिति का मंच, पुलिस वाॅचटॉवर, होंगे, माइक सब लगे हुए मिलते।

अब नये जमाने का माहौल बदल गया। रावण के पुतलों की, लंका की डिमांड बढ़ गई। अब आर्डर पर हाजिर है अचलित-स्वचलित, टिमटिमाने-बोलने वाला रेडिमेड रावण बाजारों में उपलब्ध है। चाहे जितनी ऊंचाई का, मनचाही लंबी लंका वाला।

अक्सर दशहरे के आस पास कभी छोटे-बड़े लोडिंग वाहनों में असेंबल किये रावण तो कभी उसके शरीर के अंग जैसे सिर, हाथ, पैर, धड़, तलवार, लंका लाते ले जाते दिख जाती है।

देख लो रावण देखने का क्रेज पहले भी था वर्तमान में भी है लेकिन पहले क्रमशः बनते रावण देखने के क्रेज का आनंद बहुत ज्यादा था लेकिन रावण जलाने का क्रेज व मजा आज भी उतना ही बरकरार हैं।

- मदन वर्मा " माणिक "

इंदौर, मध्यप्रदेश

मो. 6264366070