कभी-कभार

यह भी एक सच है कि

ये आसमान

एक बराबर नीला नहीं होता

सभी के लिए ,

विराट खालीपन के स्थायित्व संग

नाकाम रह ही जाता है

ढकने में

कुछ सभ्यताओं के सर 

कभी-कभार !!


चांद की सुंदरता के मायने

सबके लिए अलग-अलग ही हैं ,

उसकी नित नई बदलती हुई आकृतियां

बदल ही देती हैं

जीवन की तटस्थ रेखाएं भी

कभी-कभार !!


धूप हर बार ही अच्छी लगे

ये जरूरी तो नहीं ,

उसका चटख पीलापन

कर देता है कुछ रंग बिल्कुल फीके से

कभी-कभार !!


हर किसी को नहीं दिखते

बादलों के पीछे से झांकते हुए इंद्रधनुष ,

नहीं सुहाती बराबर

ये बारिश भी ,

तृप्ता सी बरसती है कहीं,

और कहीं 

बनकर सैलाब 

बहा ले जाती है सब कुछ

कभी-कभार !!


,,,,,,और हां

प्रेम का दूसरा नाम होता है "इंतज़ार"

कभी-कभार !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश