भौतिकता की चकाचौंध से,दूर हुआ बहकावे में |
नाते रिश्ते छूट गये सब, नकली चमक दिखावें में ||
समय नहीं है समय नहीं है, जोर- जोर चिल्लाता है |
मोटर गाड़ी से ही चलना, उसके मन को भाता है ||
छोड़ काज सब अब जुटा हुआ,जीरो फिगर बनावे में |
नाते रिश्ते छूट गये सब , झूठी चमक दिखावे में ||
अर्थ बना है संगी साथी, शर्म उतारी नारी ने |
संबंधों में लगी सेंध है, गैर लगाया प्यारी ने ||
बुझे पिपासा धन से केवल, सब सुख जाम लगावे में |
रिश्ते नाते छूट गये सब, नकली चमक दिखावे में ||
गाय घूमती आवारा है, घर में कुत्ते पाले है |
माँ बाप पड़े है वृद्धाश्रम, कैसे ये रखवाले है ||
सर्व संस्कार संवादों में, बिखर गये बहकावे में |
नाते रिश्ते सब छूट गये, नकली चमक दिखावे में ||
सुख दुख सारी मन की स्थिति है,अपने गले मिलो भाई |
आडम्बर की छोड़ो चादर , बांटों सब प्रेम मिठाई ||
समय अभी बाकी है बंदे ,भूलो नहीं भुलावे में |
नाते रिश्ते छूट गये सब, नकली चमक दिखावे में ||
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कवयित्री
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
लखनऊ
उत्तरप्रदेश