लिखते वक्त

हर बार लिखते वक्त

वो 'कुछ शब्द' 

कविता की पकड़न से

छिटक कर दूर चले जाते हैं

विपरीत दिशाओं में 

हर बार ,

जरूर,, अवशेष हैं ये

असमय की गई जिदों के ,

या फिर 

अवहेलनाओं की ठोकरों से ग्रस्त

पड़े हुए थे अब तक

मन के किसी कोने में

शांत से

किसी सुगबुगाहट में ,,

या फिर

हो सकते हैं कोई जरिया

लौटने का

किसी भूले का

हम तक ,

कि लौट नहीं पाता था जो

तमाम कोशिशों के बाद भी !!

नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ , उत्तर प्रदेश