पहला प्यार

पहले प्यार का मधुर एहसास,

था सोलहवां साल,महीना मधुमास।

पुलकित तन,बावले मन का उन्माद,

हर बात उसकी लगती थी खास।


छुपकर उसके निहारने का था मुझे आभास,

सलोना मुख,अद्भुत ओज सुहास।

छेड़ती सखियां मुझे नाम उसका लेकर,

बहाने बनाकर जब मैं जाती उसके पास।


सच प्रथम प्रीत का वो पवित्र उच्छवास,

रहता अधूरा पर हृदय में सदा करता वास।

चला गया वो किसी और शहर में,

जवां होती उमंगें फिर बनी उदास।


वो दौर ही कुछ ऐसा था जब भावना करती हृदय में वास,

दूरी में भी प्यार और मन मृदु सपनों का आकाश।

परिवार के लिए तब त्याग किया जाता था प्यार का,

अनोखा रहता था जुदाई के आलय में प्रीत का निवास।


            डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ)

                   स्वरचित