मुझे बात बनानी नहीं आती
लिखता हूं जुबानी नहीं आती
समझा सकूं ऐसा हुनर नहीं
मायनों से भरी कहानी नहीं आती .............
कहता हूं पर अदा नहीं आती
मौसम बनता है पर फिजा नहीं आती
हौसलों में कंजूसी कहां
चल पड़ता हूं पर विदा नहीं आती..............
नजाकत है पर नजर नहीं आती
किसी तारीफ की खबर नहीं आती
थकान नहीं पर आराम की गुंजाइश है
चले कितना भी की डगर नहीं आती............
कोशिश है निपुणता नहीं आती
सपनों के रास्तों में मंजिल नहीं आती
पल पल जिंदगी उम्रदराज हो रही है
खोने के डर से सफलता हासिल नहीं होती........
इस सफर के मायने बहुत है
विराम तक राम के सपने बहुत है
बात हार जीत ,जीवन मृत्यू की नहीं है
मकसद पूरे करने के इरादे बहुत है...............
राम पंचभाई,यवतमाल