मंजिलों की तलाश में।

चल रहा हूं मैं तो

निकल कर फिर वही सफ़र पर

मंजिलों की तलाश में

ना जाने कब मिलेगी मुझे मेरी मंजिल ,

पर हार नहीं मानूंगा आगे बढ़ता हूं

चलता हूं फिर वही सफ़र पर

कांटों की चुभन कठिनाईयों की डगर

गमों का अन्धकार हो

यह दुखों का पहाड़ हो

में तो चल रहा हूं आगे मंजिलों की तलाश में,

जीवन संघर्षों की कहानी का एक प्रारूप है

पटकथा कहानी रंगमंच की निशानी है

हर कोई यह एक किरदार में हैं

नाटक है यह तो हर कोई कलाकार हैं

ज़िन्दगी रंगों की बहार है

दुख सुख दो ही उसके अपने वफादार हैं,

इसीलिए चल रहा हूं में तो 

निकल कर फिर वही सफ़र पर

मंजिलों की तलाश में ....।।


प्रेषक - लेखक हरिहरसिंह चौहान 

जबरी बाग नसिया इन्दौर मध्यप्रदेश 452001

मोबाइल 9826084157