दुनिया का 68 अरब डालर का आर्ट बाजार

सितंबर महीने में भारतीय कला जगत ने इतिहास रच दिया। अमृता शेरगिल की 1937 की पेटिंग 'द स्टोरी टेलर' 61.8 करोड़ में बिकी, जो भारत की कला जगत की सब से महंगी बिकने वाली कृति है। भारत के लिए खुशी की बात यह है कि इसके 15-16 दिन पहले ही एस एस रजा की पेंटिंग 'गैस्टासन' लंबी चली नीलामी के बाद 51.75 करोड़ रुपए में बिकी थी।

 उस समय उनके नाम भारत के सब से अधिक कीमत में बिकने वाले आर्टवर्क का रिकॉर्ड दर्ज हुआ था। नीलामी करने वाली कंपनी पुंडीले ने तो उसकी बेज प्राइस ही 25 करोड़ रुपए रखी थी। पर उन्हें तब आश्चर्य हुआ जब दोगुनी कीमत में सौदा तय हुआ। रजा के पहले यह रिकॉर्ड वी एस गाइतोंडा के नाम था। उनकी पेंटिंग 2022 की नीलामी में 48.3 करोड़ रुपए में बिकी थी। इस तरह भारत के कलाकारों का रिकॉर्ड एक के बाद एक टूटता रहा, ऐसा पहली बार हुआ है।

नीलामी करने वाली विश्व की ऐसी शिखर की कंपनियो में स्थान रखने वाली 'क्रिस्टी' की अब भारत में भी शाखा है। रजा की पेंटिंग की विश्व में सब से अधिक मांग है। 2018 में उनकी 'तपोवन' नाम का आर्टवर्क लंदन की नीलामी मे 28 करोड़ रुपए और 'सौराष्ट्र' नाम की पेंटिंग 18 करोड़ रुपए में बिकी थी। पेंटर फ्रांसिस न्यूटन सौजा की 'हंगर' शीर्षक वाली पेंटिंग 34.5 करोड़ में बिकी थी। भारत के ही अन्य पेंटर तैयब मेहता की कृति 'टू हीड्स' भी प्रसिद्ध है। एम एफ हुसैन और अकबर पदमशी की पेंटिंग की भी मांग है। एम एफ हुसैन की सब से अधिक 18.8 करोड़ में पेंटिंग बिकी है।

भारत में भारत का और विदेश का आर्टवर्क खरीदने और बेचने के लिए और नीलामी करने वाली कंपनियां बढ़ती जा रही हैं। रजा या गाइतोंडे के वर्क जैसी रकम तो चुनिंदा कलाकारों को ही मिलती है। पर अब भारत में नई पीढ़ी आर्ट को केवल शौक के रूप में ही नहीं अपना रही, बल्कि उसे भारत या विश्व के बाजार में किस तरह लाया जाए, इस प्रक्रिया में भी रुचि लेने लगी है। आर्ट क्षेत्र के सलाहकार और एजेंट भी बढ़ते जा रहे हैं।

युवा कलाकार 50 हजार से ले कर 5 लाख तक का लक्ष्य रख कर चित्र और पेंटिंग की कृति बेचने के लिए रखते हैं। अब नीलामी कर के देने वाली स्टार्ट अप कंपनियां भी खुलती जा रही हैं। जिसमें पुंडोलेस, सेफोनार्ट, दिनेश एंड मीनल वजीरा की और ग्लोबल आर्ट हब मुख्य हैं। उसी तरह पेंटिंग में अच्छा लाभ जोड़कर उन्हें देश विदेश में बेचने वाले व्यापारी भी हैं और ऐसी कृतियों को ले कर खुद उन्हें प्रदर्शित करने वाली गैलरी में रखते हैं, जिनमें कीमत लिखी होती है। आयोजक इनमें से अपना लाभ लेते हैं।

मुंबई का बालीवुड, फैशन और कल्चर के बाद अब देश का कला जगत भी हब बन गया है। भारत में कला बाजार पिछले 20 सालों से ही अंतरराष्ट्रीय स्तर का हो गया है। डिजिटर टेक्नोलॉजी के कारण वैश्विक संपर्क आसान हुआ है। इसके सामने यूरोप की तुलना न हो सके, पर चीन का आर्ट बाजार भी सालाना 160 करोड़ रूपए पहुंच गया है।

 भारत की जो कलाकृति भारत या विश्व में बिकती है, उसमें स्वर्गस्थ कलाकारों की ही महत्ता है, पर चीन में स्वर्गस्थ कलाकारों की कृति का बाजार 80 करोड़ रुपए है। आने वाले 16 नवंबर से 19 नवंबर के दौरान मुंबई के महालक्ष्मी रेस कोर्स में भारत का सर्वप्रथम आर्ट फेयर आयोजित हो रहा है, जिसमें भारत के शहरों की 50 से अधिक आर्ट गैलरी के अलावा लंदन की ग्रोस्वेनोर भी भाग लेने वाली है। इसके बाद आने वाले फरवरी महीने में नई दिल्ली में इसका आयोजन होने वाला है।

भारत जी-20 का यजमान बना और उसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'भारत मंडपम' और बुकलेट में भारतीय संस्कृति दुनियाभर के मेहमानों के सामने पेश किया था। भारत कला, स्थापत्य, प्रत्येक प्रांत की अपनी संस्कृति और कला में कितना अनोखा है और उसके प्राचीन और अर्वाचीन दोनों के प्रजेंटेशन को उसमें शामिल किया गया था। इसलिए  इस कारण भी दुनिया को अब अधिक दिलचस्पी जागेगी।

विश्व का आर्ट बाजार 68 अरब डालर (5,44,000) करोड़ रुपए का है, जबकि तमाम कलाकृति यानी कि आर्ट बाजार का भारत का बाजार साल 2022-23 में 1120 करोड़ रुपए का था अंर इसमें भारत की कुल 3883 कलाकृतियां बिकी थीं। कहा जाता है कि पांच साल में यह आंकड़ा दोगुना हो गया है। अब दो साल में दोगुना होने का अंदाज है। जबकि दुनिया में अभी भारत का तो अभी चौथाई का चौथाई हिस्सा भी नहीं है। विश्व के कुल आर्ट बाजार में अमेरिका का 42 प्रतिशत का हिस्सा है तो यूरोप का 23 प्रतिशत।

भारत की पेंटिंग की बिक्री 18 से 80 करोड़ में होती है तो हमारी आंखें फैल जाती हैं। पर दुनिया की सब से ऊंची कीमत पर नजर डालें तो चौंक जाएंगे। पर उसके पहले यह बता दें कि इतनी अंधाधुंध रकम दे कर यह पेंटिंग खरीदता कौन है? एक ऐसा वर्ग खरीदार है, जो शेयर बाजार में और सोना-चांदी या जमीन में पैसा इन्वेस्ट करता है, उसी तरह कलाकृति खरीद लेते हैं और भविष्य में जरूरत पड़ती है तो उसे विश्व बाजार में या नीलामी में रखते हैं। 

दूसरा वर्ग ऐसा है, जो नीलामी में अन्य बोली लगाने वालों को पिछाड़ कर बाजार में अपनी आर्थिक ताकत की धाक खड़ी करते हैं। उनका प्रतिद्वंद्वी खरीदना चाहता है, यह पता चलता है तो उसे तो नहीं खरीदने दूंगा, इस तरह के अहम का टकराव भी होता है। कुछ प्योर कलाकृति के व्यापारी होते हैं, उन्हें पता होता है कि वह जिस भाव में खलीदते हैं, आगे चल कर अनेक गुना भाव खरीद लाएंगे। कुछ ऐसे भी एजेंट होते हैं, जो मूल खरीदार का नाम जाहिर न हो, वे इस तरह की पार्टी के लिए कृति खरीदते हैं। 

वे किसी खिलाड़ी, फिल्मी कार्पोरेट हस्ती या श्रीमंत के लिए खरीदते हैं। क्योंकि संभव है कि बेचने वाले को पता चल जाए कि उसे मुकेश अंबानी या तेंदुलकर या शाहरुख खान खरीद रहे हैं तो उसका भाव आसमान पर चढ़ जाएगा। दूसरे कलाकृति स्मार्ट इन्वेस्टमेंट है। भारी खर्च दिखाना हो तो आर्ट कृति इसमें काफी मदद करती है। आप 25 लाख रुपए की कृति, पेंटिंग या कलात्मक वस्तु या एंटीक का दाम एक करोड़ भी कह सकते हैं। हर समय ऐसी चीजों का बिल होना जरूरी नहीं है। आर्ट और एंटीक की चोरी या तस्करी अलग बात है। यह तो आर्थिक व्यवस्था की बात। 

यूरोप और साउदी अरब, कतार और अबू धाबी जैसे देश अपने म्युजियम में या सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए लाखो डालर में कलाकृति खरीदते हैं। लगता है ये देश अपनी समृद्धि की ताकत के लिए  ऐसा करते हैं। कार्पोरेट समूह अपने आफिस के हाल की दीवारों, लाॅबी या चैंबर के लिए कृति खरीदते हैं। तमाम सेवेन स्टार होटल भी इसमें मोटी रकम इन्वेस्ट करते हैं। ऐसे ही स्थान चर्चा या आकर्षण का केंद्र बनते हैं कि देखो आफिस या होटल में तो पांच करोड़ की पेंटिंग ही है। उस कार्पोरेट या उद्योगपति के घर या आफिस में विश्व की शिखर की दसवें नंबर की पेंटिंग है। 

तमाम श्रीमंत या देश के प्रमुख लोगों को कला और संस्कृति की समझ और महत्ता पता होती है और कलाकारों को प्रोत्साहित करने की भावना भी होती है। तमाम धनकुबेरों को कलाकृति की परख और गहरा अध्ययन भी होता है। तमाम ऐसे मामले होते हैं, जिनमें देखादेखी ही नहीं होती। वे कलाकृति खरीदना अपना ऊंचा शौक मानते हैं। वे मात्र पूंजीवादी ही नहीं, संवेदना का भी अनुभव करते हैं और दुनिया को अपनी प्रतीति भी कराना चाहते हैं।

अब आगामी दशक भारत के कलाकारों का हो सकता है, क्योंकि दुनिया का ध्यान भारत ने खींचा है। अब तो कला और डिजाइन की शिक्षा देने वाली संस्थाएं भी खुलती जा रही हैं। आपकी प्रतिभा मात्र शौक के लिए या तालियों तक सीमित न रह जाए, प्रोफेशनल विचार आने लगे। आप रचना भले ही धंधे के हेतु से न करें, पर तैयार होने के बाद आप उसे भारत या विश्व बाजार या गैलरी में प्राइस टैग के साथ रखें।

 नीलामी या ऑनलाइन बिक्री के लिए रखें। जिससे अपनी हैसियत के हिसाब से खरीद कर लोग कलाकारों को प्रोत्साहित करते रहें। शौक न भी हो तो थोड़ा समय निकाल कर देखने जाएं। शायद आप में भी कला का शौक जाग्रत हो। एक समय यूरोप विश्व में आर्थिक ताकत था, क्योंकि वह कला और संस्कृति तथा म्युजियम की संस्कृति वाला था। चलिए हम भी अपनी प्राचीन अतुलनीय परंपरा को जीवित करें। 

वीरेंद्र बहादुर सिंह

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