जिंदगी कशमकश में है,
उलझन में है,
समझ नहीं आ रहा कि
खुशी मनाया जाये या गम,
खजाना पा लिया या फूट रहे बम,
ये कैसे संभव है एक साथ,
कैसे मान लिया जाय एक नहीं है
नागनाथ और सांपनाथ,
खुशी इस बात की कि
चांद तक हमारी सुखद पहुंच है,
विज्ञान ने साबित किया
तर्क ज्ञान विज्ञान वाला ही सही मनुज है,
पर दूसरी ओर
बढ़ रहा है मानसिक और नफरती दीवार,
लोगों में तेजी से फैल रहा है
धार्मिक,साम्प्रदायिक,जातिय ग़ुबार,
नफरत की ये महामारी
कितनी तेजी से आगे बढ़ रही है,
अवाम इस बीमारी से मर रही है,
संगठन, सभा, जुलूस से आगे बढ़
स्कूलों तक जा पहुंची है जातिय मवाद,
वैसे ही जैसे चांद पर चंद्रयान,
कोई नहीं दे रहा इस पर बयान।
राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग