मुम्बई बैठक से बढ़ी इंडिया की ताकत

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पहले से अड़चन में लाने वाले विवादास्पद कारोबारी गौतम अदानी को लेकर हुए नये खुलासों, चीन द्वारा जारी नये नक्शे से पीएम द्वारा झूठ बोला जाना साबित हो जाने, संसद के 18 से 22 सितम्बर तक अचानक बुलाए गये विशेष सत्र, नजदीक आती जी-20 की बैठक जैसे मुद्दों के बीच 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार को चुनौती देने के लिये बने विपक्षी गठबन्धन इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंन्क्लूजिव एलाएंस) की दो दिवसीय बैठक गुरुवार को जिस सकारात्मक नोट के साथ प्रारम्भ हुई है, वह आशा बंधाती है कि भारत को जिस आर्थिक बदहाली, सामाजिक विखंडन और कुप्रबन्धन के गर्त में इस सरकार ने डाल रखा है, उससे उबारने के लिये देशवासियों के सामने एक मजबूत विकल्प साकार हो सकेगा। 

इस दो दिवसीय बैठक में इंडिया का शुभंकर यानी लोगो, संयोजकों का मनोनयन, सीटों का बंटवारा, भावी कार्यक्रम जैसे विषयों पर फैसले होने हैं जिसके बाद इंडिया के घटक दल चुनावी तैयारियों में लग जायेंगे। इसी वर्ष जून में बिहार की राजधानी पटना तत्पश्चात जुलाई में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में हुई बैठकों की कड़ी में यह तीसरा महाजुटान है। पटना बैठक में 16 विपक्षी दल इसमें शामिल हुए थे, जबकि बेंगलुरु में 26 दल आ जुड़े थे। अबकी बार दो नये दल भी इंडिया से आ मिले हैं जो बतलाता है कि सामूहिक प्रतिपक्ष सघन और विस्तृत दोनों ही हो रहा है। 

जिन दलों को लेकर संशय था, वे भी संयुक्त विपक्ष का हिस्सा बनते गये (जैसे आम आदमी पार्टी) या जिन नेताओं की निष्ठा पर शक जाहिर किया जा रहा था, वे भी साथ हैं। ऐसों में एनसीपी के सुप्रीमो शरद पवार मुख्य हैं जिनके बारे में कहा जा रहा था कि वे कभी भी पाला बदल सकते हैं। उनके बारे में ऐसा सोचने का कारण यह था कि उनके भतीजे और कुछ प्रमुख समर्थक उनसे अलग होकर महाराष्ट्र की उस मिली-जुली सरकार का हिस्सा हैं जिसके अन्य घटक दल भाजपा तथा शिवसेना का एकनाथ शिंदे वाला धड़ा है। 

वही पवार इस वक्त इंडिया के प्रमुख नेताओं में से एक हैं और शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के पुत्र व उद्धव धड़े के प्रमुख हैं। वे पवार के ऐसे सहयोगी हैं जिनके बल पर भाजपा-शिंदे-अजित पवार (शरद पवार के भतीजे, जो अलग हुए नेताओं में से एक हैं) की सरकार वाले महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई में इंडिया की बैठक कर रहे हैं। इसके पहले हुई बैठकें उन राज्यों में हुई थीं जिनमें इंडिया में शामिल दलों की सरकारें हैं। बिहार में जनता दल यूनाईटेड (जेडीयू) व राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की, तो कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है। 

यह बैठक ऐसे वक्त में हो रही है जब नये खुलासों के रूप में अंतरराष्ट्रीय ख्याति की संगठन ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) ने नया धमाका किया है जिसमें बतलाया गया है कि गौतम अदानी एवं उनके भाई विनोद अदानी ने अपनी ही राशि से खुद की कम्पनियों के शेयर खरीदकर उस नियम का उल्लंघन किया है जिसके तहत कोई भी कम्पनी का प्रमोटर इनसाइड ट्रेडिंग नहीं कर सकता। निर्धारित संख्या में कुछ शेयर छोटे निवेशकों द्वारा खरीदे जाते हैं। इस रिपोर्ट को दो प्रसिद्ध अखबार गार्डियन और दी फाइनेंशियल टाइम्स ने भी प्रकाशित कर बतलाया है कि मोदी के साथ ही निवेशकों के हितों की रक्षा करने के जिम्मेदार सेबी, जांच एजेंसियों आदि ने भी अदानी को बचाने में भूमिका निभाई।

 उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले हिंडनबर्ग रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया था कि मोदी ने गौतम अदानी को फायदा पहुंचाया था। राहुल गांधी बार-बार यह मामला उठाते आए हैं। उन्होंने पिछले साल निकाली अपनी श्भारत जोड़ो यात्राश् में इस मुद्दे को उठाया था तथा मोदी-अदानी के रिश्तों के बारे में लोकसभा में सवाल उठाये थे। इसके चलते एक अवमानना मामले का सहारा लेकर राहुल को लोकसभा से निलम्बित कर दिया गया था। मामला सुप्रीम कोर्ट में भी है और सेबी भी अड़चन में दिख रहा है। 

जिसने अदानी को क्लीन चिट दी थी। इसी मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में संयुक्त संसदीय समिति बनाने की मांग की गई थी जिसे सरकार ने नकार दिया था। मुम्बई के बैठक स्थल पर आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने इस मामले को उठाते हुए कहा कि जी-20 की बैठक भारत में होने जा रही है। ऐसे में यह रिपोर्ट सामने आना देश की प्रतिष्ठा के प्रतिकूल है क्योंकि इस रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि अदानी परिवार मोदी के करीबी हैं। राहुल ने कहा कि इस लेन-देन में दो विदेशी नागरिक नासेर अली शबान अली तथा चेंग चुंग चिंग भी सम्बद्ध हैं जो भारत की सुरक्षा को लेकर बड़ा खतरा है। 

उन्होंने अपना पुराना सवाल दोहराया कि जो पैसा लगाया गया है, वह किसका है। राहुल के अनुसार 10 लाख डॉलर भारत से बाहर गया और फिर घूमकर भारत की अदानी की कम्पनियों में निवेश हुआ जिससे उनके शेयरों में उछाल आया एवं सरकारी परिसम्पत्तियों को इसी राशि से खरीदा गया। कहना न होगा कि इन कारणों से पहले से परेशान मोदी तथा भाजपा इंडिया की बढ़ती ताकत से और संकट से घिरते जा रहे हैं। वैसे तो इंडिया के जवाब के रूप में एनडीए की भी बैठक बुलाई गई है जिसमें 38 सदस्य हैं। यह अलग बात है कि इनमें से 24 पार्टियां ऐसी हैं जिनका किसी भी राज्य की विधानसभा या लोकसभा में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। बेशक, इंडिया की मुम्बई बैठक संयुक्त प्रतिपक्ष की बढ़ती ताकत का गवाह पहले ही दिन बन गई है।