एक अपरिपक्व राजनेता और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के हालिया विवादित बयानों से सहमति का कोई आधार नजर नहीं आता। बल्कि ऐसा लगता है कि भारत विरोधी ताकतों के हाथ में खेलते हुए वे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की गरिमा बनाये रखने के लिये जरूरी विवेक खो बैठे हैं। कनाडा सरकार को बिना किसी आरोप पत्र और मुकदमे के यह निष्कर्ष निकालने में कोई समय नहीं लगा कि ब्रिटिश कोलंबिया में 18 जून को खालिस्तानी समर्थक चरमपंथी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार के एजेंटों का हाथ हो सकता है।
कनाडाई संसद को संबोधित करते हुए कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि उनकी सुरक्षा एजेंसियां सक्रिय रूप से मामले में आरोपों की पड़ताल कर रही हैं। यहां तक कि बेतुकी दलील दी कि कनाडाई धरती पर उसके नागरिक की हत्या में किसी विदेशी सरकार की संलिप्तता हमारी संप्रभुता का अस्वीकार्य उल्लंघन है। वहीं ट्रूडो के बयान के ठीक बाद कनाडा की विदेश मंत्री मेलानी जोली ने घोषणा की कि एक शीर्ष भारतीय राजनयिक को कनाडा से निष्कासित कर दिया गया है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि कनाडा ने ऐसी तत्परता तब भी नहीं दिखायी जब विमानन इतिहास के बड़े आतंकी हमले का शिकार हुए भारतीय एअर इंडिया विमान में 329 लोग मारे गये थे। जिसमें ज्यादातर भारतीय मूल के कनाडाई लोग थे। तब भी बम विस्फोट के तीन महीने के भीतर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई या जांच के लिये हाउस ऑफ कॉमन्स में घोषणा करने में कोई तत्परता नहीं दिखाई गई थी, जैसे निज्जर प्रकरण में तीन माह में दिखायी गई।
दरअसल, न तो कनाडा उस हमले को रोक सका वहीं उसने जांच में लीपापोती की थी। उस मामले में केवल एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया, वह भी झूठी गवाही के आधार पर। बल्कि एक निंदनीय रिपोर्ट में जस्टिस जॉन मेजर कमीशन ने उड़ान से पहले की त्रुटि, असावधानी व प्रबंधन अक्षमता जैसी बेबुनियाद दलीलें दी थीं। बहरहाल, यह दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जायेगा कि कनिष्क विमान हादसे में मरे सैकड़ों लोगों को न्याय से वंचित करने वाली कनाडाई सरकार अब संदिग्ध व्यक्ति की हत्या से परेशान है।
वह व्यक्ति जिस पर भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने पंजाब में आतंकवाद को पुनर्जीवित करने के प्रयासों का आरोप लगाया था। इसके बावजूद भी कनाडा सरकार के पास भारतीय एजेंटों द्वारा हत्या के अकाट्य सबूत हैं, तो कनाडा सरकार को भारत सरकार से इन प्रमाणों को साझा करना चाहिए। यह निर्विवाद तथ्य है कि बिना जांच-पड़ताल के निष्कर्ष पर पहुंचने वाले ट्रूडो भारत के लिये गंभीर चुनौती खड़ी कर रहे हैं। सही मायनों में उनका यह फैसला कटरपंथी समूहों को बढ़ावा देने वाला है।
जो भारतीय क्षेत्रीय संप्रभुता को खतरे में डालने के कुत्सित प्रयासों में लगे रहते हैं। कनाडा सरकार की बेतुकी व अतार्किक कार्रवाई के जवाब में नई दिल्ली द्वारा एक कनाडाई राजनयिक को निष्कासित करना जैसे को तैसे वाला जवाब है। ओटावा को अपने तौर-तरीके सुधारने के लिये बाध्य करने के लिये ऐसी राजनयिक दृढ़ता जरूरी है। बहरहाल, मौजूदा हालात में यह नहीं लगता कि दोनों देशों के संबंध जल्दी ही पटरी पर लौटेंगे। दरअसल, कनाडा के प्रधानमंत्री की अल्पमत सरकार को उन तत्वों का समर्थन है, जो भारत विरोधी अलगाववादियों की पीठ पर हाथ रखते हैं।
ट्रूडो अपनी सरकार सुरक्षित रखने के लिये इन भारत विरोधी तत्वों के हाथ की कठपुतली बनते जा रहे हैं। दरअसल, जी-20 सम्मेलन के दौरान भी ट्रूडो का गैरजिम्मेदार रवैया सामने आया। तभी लगा था कि वे खालिस्तान समर्थक तत्वों की हरकतों को गंभीरता से नहीं लेते। लेकिन वे कनाडा पहुंचकर ऐसा कदम उठाएंगे, ऐसी उम्मीद किसी को नहीं थी।
दरअसल, अलगाववादियों की आवाज उन्हें अपने नागरिकों की अभिव्यक्ति की आजादी नजर आती है। इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि भारत की संप्रभुता और एकता-अखंडता के गंभीर मुद्दे की तुलना वे अपनी राजनीतिक मजबूरियों के मामले से कर रहे हैं। इसके बावजूद उन्हें अतंर्राष्ट्रीय संबंधों की गरिमा का ख्याल रखना चाहिए।