अविरल चक्षु मुक्ता दिन रैन बहे,
किस डगर तुम चले गये?
अपलक राह निहारे पथ पर,
जिस पथ पर तुम चले गये।
प्रतीक्षा, तितिक्षा,विस्मित मन,
पथिक,पंछी सबसे पूछे पता ,
उर वेदना से सिंचित,विश्वास से सस्मित मन।
बिछा पलक पाँवड़े अपलक निहारूँ,
जिस पथ पर तुम चले गये...
विश्वास है तुम्हारी बातों पर,
आऊँगा ज़रूर कहा था,
हाथों में मेरा हाथ लेकर।
उस क्षण के सुरभित एहसास को,
आज फिर तुम जगा गये...
लापता हो तुम ये मैंने सुना है,
सीमा पर अभी भी तुम्हारा न कोई पता है,
दिल जानता है,तुम ज़रूर आओगे,
मेरी बिंदिया, चूड़ी में खनक फिर लाओगे,
स्निग्ध तुम्हारी यादों से पल पल तुम तड़पा गये...
डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ)