सीता ( वर्णिक)

राधाष्टमी 

 लाड़ली लक्ष्मी स्वरूपा, कृष्ण अन्तः स्वामिनी। 

भाद्र  शुक्ला अष्टमी को, जन्म लें  माँ ह्लादिनी।। 

कृष्ण आत्माराम ही हैं ,   वे स्वयं  में पूर्ण  हैं,

भू-सनेही राधिका भी,  केशवी   वे   संगिनी। 

भक्ति भी अभ्यास याचे, साम्य-भावी  में  मिले,

प्रेम भासे  कृष्ण  में  जो, राधिका विस्तारिनी। 

नित्य  हैं  चैतन्य  कृष्णा, भानुजा आनंद  दें,

कौन कृष्णा, ज्ञान दें जो, विश्व बाधा नाशिनी। 

श्राप देते हैं  सुदामा,  हों  विछोही कृष्ण  से,

"ब्रह्म का आशीष ये था, रासलीला   शोभिनी।"

मीरा भारती,

पटना, बिहार।